मैं बहुत ज़्यादा व्यथित हूँ। मैंने अपने बेटे को इंजीनियर बनने के लिए बाहर भेजा। ५ साल से बेटा बाहर ही रह रहा है। अभी उसकी इंजीनियरिंग कंपलीट हुई है, जब हमने वापस बुलाया तो उसने कहा ‘मैं आपके पास नहीं आना चाहता हूँ क्योंकि मैंने किसी लड़की से शादी कर ली है, आप कौन होते हो मुझे बुलाने वाले?’ मैंने बेटे से पूछा कि ‘तूने हमारे बिना पूछे शादी क्यों की?’ तो बेटे ने कहा कि ‘आप मेरे लायक लड़की नहीं ढूंढ सकते थे इसलिए मैंने मेरे लायक लड़की ढूंढ कर शादी कर ली।’ मैं आपसे जानना चाहती हूँ क्या माता-पिता को ऐसे बेटों से रिश्ता रखना चाहिए?
जो तस्वीर आपने प्रस्तुत की है बहुत घिनौनी है। ये विडंबना है। आज ऐसी सन्तान को सन्तान कहने में भी लज्जा आती है। उसे सन्तान कहने की जगह पेट का कीड़ा कहना ज़्यादा अच्छा है जो अपने माँ-बाप के साथ इस तरह का व्यवहार अपनाता है। कहने को वो पढ़ा-लिखा है पर ऐसे पढ़े-लिखे से जानवर भी अच्छे, वो कहाँ पढ़ा-लिखा? मां-बाप ने कितने अरमान संजो कर अपने बेटे को भेजा कि मेरा बेटा पढ़-लिख करके इंजीनियर बन जाए। बेटा इंजीनियर बन करके माँ-बाप का नहीं रह पाया और कहता है ‘आप मेरे लायक लड़की नहीं ढूंढ सकते।’ मुझे लगता है उसने शायद कहने में चूक कर दी। शायद उसने यह भी समझ लिया हो कि ‘मैं अपने लायक लड़की को तो ढूंढ लिया पर मैं अपने लायक माँ-बाप को नहीं ढूंढ पाया। माँ-बाप के लायक नहीं बन पाया।
माँ-बाप ही अपने लड़के को जब अपने लायक न लगे तो ऐसे सन्तान को नालायक कहने के अलावा और क्या कहेंगे? मैं कहता हूँ जिसे रंच मात्र भी माता-पिता के सम्मान का कोई भाव न हो, ऐसे नालायकों से सुरक्षित दूरी रखना चाहिए। जिसे माता-पिता की भावनाओं का कोई ख्याल न हो तो उस सन्तान को जन्म देने से क्या मतलब? वैसे अब उसने कर दिया तो उसे उसके हाल पर छोड़ दो लेकिन अपने मन में मलाल मत रखो, यह युग की विडंबना है। मैं तो आज सबसे कहना चाहूँगा, हर कोई अपने बेटे को डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहता है, सीए बनाना चाहता है, एमबीए बनाना चाहता है, आप कुछ भी बनाओ उससे पहले अपने बेटे को बेटा बनाओ, एक अच्छा इंसान बनाओ तब काम होगा। आप और कुछ बनाने में तत्परता दिखाते हो पर अपने बच्चों को बेटा बनाने की कोशिश नहीं करते उसका यह कुपरिणाम आता है। हमें इसकी तरफ बिल्कुल ध्यान देना चाहिए, इसकी तरफ बहुत गम्भीरता से सोचना चाहिए।
एक उदाहरण आपने दिया, एक उदाहरण मैं देता हूँ। एक लड़के ने इंजीनियरिंग की, उसके बाद यू. एस.ए. से मास्टर्स किया, मास्टर्स करने के बाद वहाँ उसकी बहुत अच्छी कंपनी में जॉब लगी, सीईओ बना एक कंपनी का। बड़ी कंपनी में बहुत अच्छा पैकेज और उसके ही समकक्ष उसे एक लड़की का प्रस्ताव आया, मन से वह लड़की को चाहता था। मगर जैसे ही प्रस्ताव आया तो उसने कहा ‘मैं अपने माता-पिता से पूछे बगैर कुछ काम नहीं कर सकता।’ जब उसने माता पिता से कहा तो माता-पिता ने कहा, ‘बेटा तू उस लड़की से शादी करेगा, विदेश में रहेगा, हमारा एक ही बेटा है, सोच लो, हम लोगों का क्या होगा? हमने इसलिए तुझे नहीं पाला कि तू विदेश में रहे, हमारी यह इच्छा नहीं।’ उसने तुरन्त माता-पिता के चरणों में शीश रखा और कहा- ‘आप लोग जो चाहेंगे वही होगा।’ उसने तुरन्त मन बनाया, अपनी कंपनी से त्यागपत्र दे दिया, वापस भारत आने का मन बनाया। वापस आकर बोला ‘आप मेरे लायक जिस लड़की को पसन्द करोगे, मैं उसे स्वीकार कर लूंगा।’ एक साधारण सी लड़की से विवाह हुआ, आज बहुत खुश है और अपने पिता के परम्परागत व्यापार को चला रहा है। माँ-बाप भी खुश, आप भी खुश, परिवार भी खुश, बहुत अच्छे से जीवन जी रहे हैं।
ये दोनों तरह की तस्वीरें हमारे सामने हैं, हम उन घिनौनी तस्वीरों से अपने आप को बचायें। इन आदर्शों को सामने रखकर के चले तभी हम समाज का सुनहरा चित्र सुरक्षित रख पाएँगे।
दूसरी बात आपने कहा कि बच्चों में संस्कार डालने के लिए ऐसे कार्यक्रम- प्रोग्राम जैसे चलते रहे। मेरी कोशिश है अब समाज के गुणात्मक परिवर्तन का अभियान चलाना चाहिए क्योंकि मैं महसूस करता हूँ कि हम लोगों के प्रवचनों से लोगों में बदलाव आता है, शंका समाधान से बदलाव आता है लेकिन जब तक हम युवा वर्ग के लिए कुछ खास कार्यक्रम संचालित नहीं करेंगे, अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे।
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