कुछ माता-पिता आजकल बच्चों को पढ़ाई का बहुत भार डालते हैं, जिससे बच्चों का बचपन छिनता जा रहा है। माता-पिता चाहते हैं कि जो हम न कर सके वो हमारे बच्चे करें। वो कहते हैं कि ‘हम तो तुम्हें इतनी सुविधा दे रहे हैं।’ क्या माता-पिता जो बच्चों पर अधिक भार डालते है वो उचित है?
मैं समझता हूँ ऐसा कृत्य बच्चों का घोर शोषण है। मेरी दृष्टि में एक प्रकार की हिंसा है। क्षमता से अधिक भार लादना कतई उचित नहीं है, ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्हें सम्भाल करके और संभल करके चलने की कोशिश करनी चाहिए।
हम बच्चों को पढ़ायें, पढ़ाने के प्रति उसके अन्दर जागरूकता रखें, खुद भी जागरूक रहें। लेकिन बच्चों के ऊपर इतना वजन न लादें कि पढ़ाई उन पर बोझ बन जाए। वर्तमान शिक्षा पद्धति को देख करके बड़ा तरस आता है कि बच्चों के वजन से ज़्यादा तो उनकी बस्ते का वजन होता है। इसका नतीजा यह निकलता है कि बच्चों के ऊपर बहुत ज़्यादा स्ट्रेस आ जाता है, तनाव आता है और बच्चे इन कारणों से आत्महत्या जैसे कृत्य करने के लिए भी विवश हो जाते हैं, कर लेते हैं। यह सब चीजें ठीक नहीं है, बच्चों की क्षमता देखिए और उसकी कार्यक्षमता को देख करके काम कीजिए।
एक बात मैं आप सबसे कहता हूँ शिक्षा के उद्देश्य को समझें, शिक्षा का मतलब क्या है? डिग्री पाना शिक्षा नहीं है, सीख लेने का नाम शिक्षा है और शिक्षा हर व्यक्ति अपनी अपनी योग्यता के अनुरूप लेता है। अभी आज मेरे पास एक IITian युवक बैठा था, जिसने एक बड़ी कंपनी में जॉब करके छोड़ा है। यहीं बैठा है-शिरीष भाई! मैंने उनसे एक सवाल किया कि ‘जो काम तुम आज कर रहे हो, क्या यह काम इतनी डिग्री ले करके करना ही जरूरी था? सबके बीच में माइक में बोलो’ – ‘नहीं, जरूरी नहीं था।’ शिरीष भाई IIT से पासआउट होकर अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में लंबे समय तक जॉब करने के बाद उसे छोड़कर आज भारत में पुणे में सेटल हुए हैं। बेसिक क्वालिफिकेशन और जिस क्षेत्र में हमें आगे बढ़ना है, उसकी मास्टरी पर्याप्त है। यह योग्यता 10th व 12th के बच्चे के अन्दर भी आ सकती है। जो चीजें 6th-7th क्लास से पढ़ना शुरू करते हैं 9th-10th में पढ़ते हैं, 11th-12th में पढ़ते हैं, वही चीजें आगे पढ़ाई जाती हैं और रटाया जाता है, आदमी को बैल बना देते हैं। आजकल की माताएँ तो बच्चों के लिए कहती हैं ‘यह भी पढ़ें, यह भी पढ़ें, यह कोर्स भी करें, यह भी कोर्स कर लें, डांस भी करें, पेंटिंग भी करें, म्यूजिक में भी चले जाएं’ और खुद? बड़ी हालत खराब है। मैं कोलकाता में था, एक दिन अपने प्रवचन में मैं ऐसा कह रहा था कि आजकल माँ-बाप से ज़्यादा बिजी बच्चे हो गए, तो एक ने बीच सभा में कहा ‘महाराज, बच्चे बिजी रहते हैं तो हम लोग ईजी रहते हैं।’ यह कहानी है।
ये चीजें ठीक नहीं है, जरूरत से ज़्यादा वजन लादोगे, वह अनेक प्रकार की कुंठा का शिकार होगा कदाचित उसका बौद्धिक विकास हो जाए, भावनात्मक रूप से वह रोगी रहेगा, उसका भावनात्मक विकास नहीं हो पाएगा, जीवन बर्बाद होगा इसलिए इस पर ध्यान देना ही चाहिए।
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