अगर किसी का जवान बेटा रास्ता भटक जाए तो उसके लिए क्या उपाय है?
भावना भाओ कि फिर रास्ते पर आए। ऐसे सोचना ही नहीं चाहिए कि बच्चा एक बार भटक गया तो काम से चला गया। अंजन चोर के जीवन को देखो, अंजन जैसा बिगड़ा कोई नहीं था लेकिन रास्ते पर आया तो ऐसा आया कि मत पूछो।
मेरे सम्पर्क में एक सज्जन हैं, उनका बेटा बिगड़ गया, ड्रग एडिक्शन…. एवं अन्य प्रकार की बुराइयाँ उसके जीवन में जुड़ गई। एक प्रतिष्ठित परिवार का बच्चा था, उसके माँ-बाप के मन में उस बच्चे को लेकर बहुत हीन भावना थी। बहुत तरह के उपाय उन्होंने अपने बच्चे के लिए कर लिये लेकिन बच्चा सुधरने की स्थिति में नहीं था। मेरे पास आए, मैंने उनको समझाया-‘देखो कर्म का उदय है, बच्चा भटका है, गलत संगति का शिकार होकर के भटका व संस्कारों से गुम हो गया। लेकिन यह मत सोचो कि यह बच्चा भटक गया तो तुम्हारे काम से ही चला गया। उसके प्रति अच्छी भावना भाओ, आज नहीं तो कल परिवर्तित होगा; कुल के संस्कार कभी नष्ट नहीं होते। जिस दिन यह परिवर्तित होगा, उसका हृदय परिवर्तन होगा, इसके जीवन की धारा बदल जाएगी।’
मैंने कहा कि ‘कभी किसी के पास जाओ तो आप अपने बच्चे की बुराई करना बंद करो।’ ऐसे बच्चों के बारे में जब भी कोई परिचय देता है, हम लोगों के पास भी- ‘महाराज, यह बहुत बिगड़ा हुआ है।’ सबको बोलोगे ‘बहुत बिगड़ा हुआ है’, तो और ज़्यादा बिगड़ जाएगा। ‘भटक गया है’ ऐसा नहीं बोलना चाहिए। उनके प्रति प्रेम और सद्भावना मूलक दृष्टि रखो, आज नहीं तो कल उसके जीवन में परिवर्तन आ सकता है। आपको सुनकर आश्चर्य होगा, एक घटना व्यक्ति के जीवन में ऐसी घटी है कि उसने उसके ह्रदय का परिवर्तन कर दिया। आज वह सारे व्यसनों से मुक्त है। घटना केवल यह घटी कि उसने सिगरेट पीकर के फेंकी और एक ढाई साल की बच्ची ने उस अद्धी को अपने मुँह से लगा लिया जो रिश्ते में उसकी भतीजी थी। भतीजी को अद्धी मुँह से लगाए देखकर उसका मन हिल गया – ‘मैं क्या कर रहा हूँ? आज मैं ऐसा कर रहा हूँ मेरी भतीजी पर क्या संस्कार पड़ रहा है।’ आज वो सुधर गया है, तो अंजन भी निरंजन होता है। आप रोगों से घृणा करो, रोगी से नहीं, पाप से घृणा करो पापी से नहीं।
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