मेरी शादी को १२ साल हो गए हैं लेकिन सन्तान नहीं हुई। हम विदेश में रहते हैं, सब प्रकार का ट्रीटमेंट लिया लेकिन सफलता नहीं मिली, बहुत आकुलता होती है। कुछ समय तो मैं डिप्रेशन में थी लेकिन आपके ऑनलाइन प्रवचनों और शंका समाधान ने मुझे मार्गदर्शन दिया, मेरी healing (उपचार) की। मैं व मेरे पति ऑनलाइन प्रवचन व शंका समाधान सुनते हैं, स्वाध्याय करते हैं लेकिन फिर भी कभी-कभी सन्तान की आकुलता होती है। गाँव आते हैं तो डर लगता है, सब पूछते हैं, क्या उत्तर दें समझ नहीं आता। महाराजश्री ऐसे में हम खुद को कैसे समझाएँ, कृपया मार्गदर्शन दें। हमारे जैसे बहुत दम्पति होंगे उन सब को मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
सन्तान का सुख ही सबसे बड़ा सुख नहीं होता, पहले अपने दिल-दिमाग में बैठाइये। अगर सन्तान के सुख का योग होगा तो अवश्य पूरा होगा और योग नहीं होगा, पूरा नहीं होगा। अगर medically कहीं कोई कमी है, तो आप ट्रीटमेंट करायें; यदि नहीं है इसे वक्त पर छोड़ दें। मेरे सम्पर्क में ऐसे ऐसे लोग भी हैं जिनको विवाह के १९ वर्ष बाद बच्चा हुआ और एक साथ twins हुए। दो बेटे हुए, उसके खुशी का कोई पारावार नहीं है; आपको १२ साल हुए हैं , अभी ७ साल बाकी हैं।
यद्यपि यह सांसारिक संयोग है, संसार का विस्तार है। लोग प्राय: इस तरह की आकांक्षाओं से अन्धविश्वास के शिकार बन जाते हैं और ऐसे लोगों का कई जगह, कई प्रकार का शोषण भी हो जाता है। पहली बात तो आप अपने मन को इस बात के लिए तैयार कीजिए कि ‘सन्तान का सुख ही सबसे बड़ा सुख नहीं है और मेरे लिए सन्तान योग होगा, तो होगा; सन्तान आएगी तो ठीक है, नहीं आएगी तो कम से कम हम दोनों अपने जीवन को धर्म ध्यान में तो लगा सकेंगे, मोक्ष मार्ग में तो आगे बढ़ा सकेंगे।’ फिर भी यदि सन्तान का ज़्यादा मोह है, तो आप फिर किसी को गोद ले सकते हैं।
मध्यप्रदेश में खुरई शहर में एक ऐसा खानदान है- श्रीमंत सेठ का। श्रीमंत सेठ, अपार वैभव से भरा खानदान जिसकी सात पीढ़ियाँ गोदनामे में चलीं। सात पीढ़ीयां केवल गोद से चली, वर्तमान में श्रीमंत सेठ धर्मेंद्र भैया भाग्यशाली हैं, उनको सन्तान हुई और उनके बेटों को भी सन्तान हुई, यह सौभाग्य है। ८ वीं पीढ़ी में, यह संयोग है इस को क्या कहेंगे! लेकिन उन्होंने अपने जीवन का उपयोग किया, मन्दिर बनवाए, धार्मिक कार्य किये, अपनी सम्पत्ति का सदुपयोग किया। तो लोग क्या कहते हैं इसको दिमाग से निकालिए, हमें अपने जीवन में क्या करना यह सोचिये।
मेरे सम्पर्क में एक दंपत्ति है जिनकी सन्तान नहीं हुई और आज उन्होंने अपने जीवन में ऐसा मोड़ घटित किया है कि अब उनके अन्दर सन्तान की इच्छा भी नहीं रही। अब वे यही चाहते हैं हम दोनों ब्रम्हचर्य और संयम का पालन करते हुए मोक्षमार्ग में आगे बढ़ेंगे और अपने मनुष्य जीवन को कृतार्थ करेंगे। एक दम्पत्ति है कलकत्ता में जिनकी सन्तान नहीं है; वह कहता है ‘महाराज अगर आप लोगों से पहले यह प्रेरणा मिल गई होती तो शायद हम आज आपके अनुगामी होते। कोई बात नहीं, आज सन्तान नहीं तो हमारे मन में सन्तान की चाह भी नहीं है। हम अपने माँ-बाप की जिम्मेदारी को पूरी करके अपने आत्म कल्याण के मार्ग में लगेंगे।’ अगर कोई उनसे बोलता भी है कि तुम्हारा बच्चा नहीं, तो उनका कहना है बच्चे की जरूरत नहीं। बच्चे की जरूरत नहीं, ये एक सोच है और अपनी सोच को जो इंसान बदल देता है वह सदैव सुखी होता है जो अपनी सोच को नहीं बदल पाता वो दुखी होता है।
उन बहन जी से जो यूरोप में बैठ कर के भी नित्य शंका समाधान एवं प्रवचन का लाभ ले रही है, उनसे और उनके श्रीमान् से मैं ये कहना चाहूँगा कि अपने मन की स्थिरता को बनाए रखें। आप डिप्रेशन से बहुत मुश्किल से बाहर निकली है, तो बस अपने आप में केंद्रित रहिए। जब तक आप आत्म केंद्रित रहेंगे, दुनिया की कोई परिस्थिति आपको विचलित नहीं करेगी और जब आप लोगों की बातों से प्रभावित होने लगेंगे, पल-पल में आपका मन विचलित हो जाएगा। अपने चित्त को विचलित होने से बचाना चाहते हैं, अपने जीवन की सही दिशा पकड़े, संयोगो को समझे और उन्हें स्वीकार करें।
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