माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश कैसे करें कि बच्चे आदर्श बच्चे बन सकें? क्या बच्चा या बच्ची की परवरिश एक जैसी करनी चाहिए या बच्ची के प्रति ज़्यादा ध्यान देना चाहिए?
बच्चा आदर्श बने, आपने बहुत अच्छी भावना भाई। हर माँ-बाप चाहते हैं कि मेरा बच्चा आदर्श बने पर हर माँ-बाप से कहना चाहूँगा, आदर्श माँ-बाप का बच्चा ही आदर्श बनता है। इसलिए आप बच्चों की अच्छी परवरिश चाहते हो और उन्हें आदर्श बनाना चाहते हो तो सबसे पहले बच्चों के लिए आप आदर्श बनें। अपना जीवन व्यवहार ऐसा बनाएँ कि तुम्हें देखकर के तुम्हारा बेटा कहे- ‘मेरे बाप से अच्छा इस दुनिया में कोई इंसान नहीं है, मेरी माँ से अच्छी कोई औरत नहीं है। अगले जन्म में अगर मुझे मेरे लिए कोई पिता मिले तो यही पिता मिले, अगले जन्म में कोई माँ मिले तो यही माँ मिले’। ऐसा बन जाओ तो तुम्हें बच्चों को कुछ कहने की जरूरत नहीं। लेकिन खुद तो रहते हो कंस की तरह और बेटे को चाहते हो श्रवण कुमार बने तो कहाँ संभव?
हम आपको आज कुछ टिप्स देते हैं, अगर आप अपने बच्चों के भविष्य को सुधारना चाहते हैं चार बातों को ध्यान में रखें। सबसे पहले बच्चों के लिए एक श्रेष्ठ उदाहरण बने, वह आपके आदर्शों का अनुकरण करें। माँ-बाप बच्चों की नज़रों में बहुत ऊँचे हों, जिनके बच्चों से पूछा जाए ‘तुम्हारा रोल मॉडल कौन है?’ उत्तर आए “मेरे पिताजी”। है इस सभा में एक भी व्यक्ति जिसका बच्चा कहे कि मेरा रोल मॉडल मेरे पिताजी है, मेरे पिताजी से अच्छा इस धरती पर कोई नहीं है? यह जिसने पा लिया उसके बच्चे के जीवन में कोई दाग नहीं लगेगा।
दूसरी बात, बच्चों की भावनाओं का ख्याल रखें। भावनाओं को कुचले नहीं और उनकी हर भावना की पूर्ति भी न करें। अच्छी भावना हो तो भी माँ-बाप दबा देते हैं। बच्चों की अच्छी भावनाओं का सदैव आदर करें। मेरे सम्पर्क में डॉक्टर दम्पति है। मैं मध्यप्रदेश में था, डॉक्टर दम्पति की इच्छा हुई कि हम लोग महाराज के दर्शन करें। रविवार का दिन था, उनके घर से ५० किलोमीटर दूर एक स्थान पर हम थे। वो अपनी गाड़ी से निकलने वाले थे, बेटी का १०th का बोर्ड एग्जामिनेशन था, संडे का दिन था। मंगलवार का पेपर था, एग्जाम चल ही रहे थे। बेटी बहुत अच्छी थी, बेटी ने कहा कि पापा मैं भी चलूँ। पिताजी ने कहा ‘बेटे, तुम्हारा एग्जाम है, मंगलवार को पेपर है, तुम्हें नहीं चलना है, तुम यही रहो, पूरा दिन खराब हो जाएगा। हम जाएँगे, डेढ़ घंटा आने में, डेढ़ घंटा जाने में, चार-पांच घंटे लग जाएँगे, १ घंटे महाराज के पास लगेगा।’ ‘आप चिन्ता मत करो, महाराज के दर्शन मिल जाने से मेरा उत्साह और बढ़ेगा और मैं अच्छी पढ़ाई करूँगी। प्लीज पापा मुझे चलना है।’ ‘तुन्हें नहीं जाना!’ बाप ने कह दिया तो बेटी क्या करेगी? चुपचाप मायूस होकर बैठ गई। उसके बाद ५० किलोमीटर की कुल दूरी थी। २२ किलोमीटर चल दिया था। उसके दिमाग में उस बेटी का चेहरा घूमता रहा। अब मन में एक विचार आया कि मेरी बेटी ने कभी मुझसे जिद नहीं की। वह हमेशा अपना परफॉर्मेंस अच्छा रखती है। आज मैंने उसकी भावनाओं को दबाकर ठीक नहीं किया। मुझे बेटी को ले आना चाहिए था, बेटी को ले आना चाहिए था, बेटी को ले आना चाहिए था। २२ किलोमीटर तक उसके मन में अन्तर्द्वंद चला। गाड़ी रिवर्स किया, बेटी के पास पहुँचा, ‘बेटी सॉरी, हम तुम्हें लेने आए हैं, चलो तुमने ठीक कहा था कि महाराज के दर्शन करने के बाद मैं और अच्छा परफॉर्मेंस कर सकूँगी। चलो महाराज के दर्शन करने के लिए। आकर के मुझे उन्होंने बताया, जैसे ही उन्होंने ऐसा कहा, बेटी अपने पिता से गले लग गई कि पापा आप सच में बड़े अच्छे पापा हो। ऐसे उदाहरण भी हैं, भावनाओं को कुचले नहीं,
आजादी युक्त अंकुश रखें। न इतनी आजादी दें कि बच्चे क्या कर रहे हैं आपको पता न लगे, न इतना अंकुश रखें कि बच्चे अपने आप को एकदम कैद में महसूस करें। अपने बच्चों की योग्यता को विकसित करने का उन्हें अवसर दें उन पर भरोसा रखें। बच्चे यदि गलती करें, छोटी मोटी गलती को इग्नोर करना सीखें, दस गलती पर एक बार बोले, एक गलती पर १० बार टोकना बंद करें। इन बातों को आप ध्यान में रखेंगे मैं समझता हूँ आपको अपने बच्चे से कभी कोई शिकायत नहीं रहेगी।
बेटे और बेटी की परवरिश, बेटा और बेटी में भेद नहीं होना चाहिए, परवरिश दोनों को एक तरीके से देना चाहिए लेकिन बेटे और बेटी दोनों को प्रारम्भ से उनके जीवन की जो बाउंड्री है, दायरा है, सीमाएँ हैं उसका संज्ञान करा देना चाहिए कि बेटे तुम्हारे जीवन की ये सीमा है, लक्ष्मण रेखा है इसको कभी क्रास मत करना, नहीं तो तू नुकसान पाएगा। ‘बेटी यह तेरे जीवन की सीमा रेखा है इसका उल्लंघन मत करना नहीं तो जिंदगी भर दुखी रहेगी’ और अपने व्यवहार से बच्चों को इस तरीके से बना लो कि अपने हर प्रॉब्लम को शेयर करने की बात आए तो सबसे पहले अपने माँ और बाप से बच्चे कहें और किसी से न कहें तो उन्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं।
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