आजकल बड़े-बड़े शहरों में, महानगरों में हम लोग जहाँ बहुमंजिला ईमारतों में रहते हैं, वहाँ अलग-अलग तरह के परिवार आस-पास, ऊपर-नीचे रहते हैं। पच्चीस-चालीस मंजिलों की मल्टीस्टोरी होती हैं। अगर नीचे वाले मकान में कुछ नॉनवेज पक रहा हो और यदि उसी समय हम घर में आहार कर रहे हैं या स्वाध्याय कर रहे हैं, तो उसकी दुर्गन्ध (smell) हम तक आती है। उस पर कुछ लोगों ने ऐसा लॉजिक दिया है कि जब भी दुर्गंध आए खिड़की बंद कर दो। गन्ध के साथ मॉलिक्यूलस आते हैं और जब हम उनको अन्दर लेते हैं, तो उसमें भी नॉनवेज का लेने का दोष लगता है। इस बारे में मैं आपसे सलाह चाहूँगा महाराज जी, क्या करें?
बहुत गम्भीर सवाल है और आज के सन्दर्भ में बहुत ही विचारनीय है। जितने भी लोग मल्टीस्टोरी में रहते हैं, उनको इस तरह की परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता है। हमारे यहाँ शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि इस तरह की दुर्गन्ध अगर भोजन के समय आ जाए, तो श्रावक के सात अन्तरायों में से एक अन्तराय है। जो मॉलिक्यूलस आ रहे हैं, ग्लानि कारक चीजें हैं, क्षेत्र शुद्धि खराब होती है। ऐसे भी जहाँ हम रहें वो पूरी तरह निर्बद्ध रहना चाहिए। पर मैं समझता हूँ, ये बातें आज के समय में अव्यवहारिक (impractical) हैं, खासकर महानगरों में ऐसी सोसाइटियाँ हों जिसमें केवल शाकाहारी लोग हों, पर आजकल कानूनी जटिलताएँ भी कुछ ऐसी आ गई हैं कि घोषित तौर पर ऐसा किया नहीं जा सकता। हालांकि, कुछ महानगरों में हैं, पर ऐसा सब जगह नहीं हो सकता तो अब क्या करें?
अगर धर्म की दृष्टि से, स्वास्थ्य की दृष्टि से, संस्कार की दृष्टि से विचार करें, तो हमें ऐसे अपार्टमेंट्स में रहना ही नहीं चाहिए। पर जहाँ रहना मजबूरी है, तो जैसा कहा गया खिड़कियाँ बंद करने की बात, जरूर कर लेना चाहिए ताकि आप उस नकारात्मकता से अपने को बचा सकें, अपने परिवार को बचा सकें। क्योंकि जिनके अन्दर संस्कार हैं वे तो फिर भी ठीक हैं, सबसे ज़्यादा बुरा प्रभाव पड़ता है बच्चों पर, रोज-रोज इन गन्धों को लेते-लेते या ये बातें सुनते-सुनते उनके अन्दर की ग्लानि खत्म हो जाती है। और जब मन की ग्लानि समाप्त हो जाती है, संवेदनाएँ समाप्त हो जाती हैं। कालान्तर में यदि वो व्यक्ति इन सब चीजों का सेवन भी कर ले तो कोई आश्चर्य जैसी बात नहीं है।
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