बच्चे के जन्मदिन पर हम जो विधान कराते हैं, उससे हमारे परिवार को पुण्य मिलता है पर जो जीव चला गया है, उसके नाम से अगर हम विधान कराते हैं, तो किसको पुण्य मिलता है?
एक शब्द आता है, पुण्यतिथि। मुझसे पूछा गया कि ‘महाराज पुण्यतिथि मनाना चाहिए या नहीं?’ तो मैंने कहा ‘ये बताओ तेरे बाप की मृत्यु हुई, तो उस दिन तेरे पुण्य का उदय आया था क्या? जो उसको पुण्यतिथि बोल रहे हो। किसी का मर जाना पुण्य है या पाप, लोक की दृष्टि से? बोलो! पाप है, तो मरने के बाद उसकी मृत्यु की तिथि को पुण्यतिथि क्यों बोलते हो? उसको पुण्यतिथि कहोगे की पाप तिथि? उसे पुण्य तिथि समझो इस सन्दर्भ में कि ‘पिता मर गए, असमय में कोई चला गया, वियोग हो गया, जीवन की नश्वरता का बोध करा दिया, तो उस स्थिति से हम पुण्य का काम शुरू करेंगे, इसलिए ये मेरे लिए पुण्यतिथि है। अब मुझे कुछ पुण्योपार्जन करना चाहिए, इसलिए पुण्यतिथि है।’ ‘मेरे पिता मर गए, स्वर्ग में चले गए, उनको पुण्य मिले’- इस लोभ से तुम पुण्यतिथि मना रहे हो तो रूढ़िवाद है। तुम्हारे किये का फल उनको नहीं मिलेगा। पर, ‘वो चले गए और मेरी आत्मा को राह दिखा गए तो उनको याद करके आज मैं विशेष पुण्य कमा रहा हूँ’- इस भाव से पुण्य कमाओ, पुण्यतिथि करो तो कोई बुराई नहीं है। इसलिए पुण्यतिथि मनाना पर दृष्टिकोण बदल देना।
Leave a Reply