भारतीय संस्कृति में साड़ी पहनने पर ज़ोर क्यों?

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शंका

जैन धर्म और हिंदू धर्म में धार्मिक, सामाजिक अथवा पारिवारिक आदि सभी स्थानों पर साड़ी पहनने पर क्यों जोर दिया जाता है? क्या हमारे तीर्थंकर या अन्य महापुरुषों के समय भी साड़ी का प्रचलन था? मैंने इंडियन हिस्ट्री में पढ़ा है कि भारत में साड़ी का प्रचलन चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी हेलेना, जो कि विदेशी थी, उसके आने के बाद से हुआ। सिख धर्म एवं मुस्लिम धर्म की महिलाएँ सलवार सूट में ही उनके धार्मिक स्थानों में प्रवेश करती हैं फिर जैन धर्म में साड़ी पर इतना जोर क्यों?

समाधान

ये परिधान हैं और परिधान अलग-अलग परिपाटियों में अलग-अलग चलते हैं। आपने कहा कि जैन धर्म में या भारत में साड़ी का प्रचलन चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी हेलेना के बाद हुआ। आज मुझे पहली बार पता लगा कि चन्द्रगुप्त मौर्य की कोई हेलन नाम की पत्नी थी। सिकंदर की पुत्री थी, चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी थी, मैं मान लेता हूँ। यह जो कुछ भी है हमारे यहाँ आज से लगभग २००० साल का इतिहास तो दिखता है। मौर्य को हुए लगभग २२०० वर्ष अधिक हो गए। भगवान महावीर के निर्वाण के लगभग एक सौ ६३ वर्ष बाद चंद्रगुप्त मौर्य हुए। आज भगवान महावीर के निर्वाण के २५४१ वर्ष हो गए। तो लगभग २३०० साल पुरानी परम्परा है इसे स्वीकार करना चाहिए। ड्रेस कोड है एक परिधान है, थोड़ा सा दूसरी धारा से विचार करो। 

परिधान कोई भी हो समय अनुरूप परिवर्तित होता है लेकिन खुद के अनुभव को देखो, कोई स्त्री यदि साड़ी पहनकर के सामने आती है और वो ही अगर जींस और टॉप पहन करके आती है दोनों में क्या अन्तर है? अन्तर महसूस होता है ना, आप खुद महसूस कर रही हैं, बस उसी का आनन्द लो। आप खुद महसूस कर रही हैं, महिला होकर कर रही हैं। एक स्त्री जब भारतीय परिधान पहन कर आती है उसमें देवी का रूप दिखाई पड़ता है, माता का रूप दिखाई पड़ता है, भगिनी का रूप दिखाई पड़ता है। लेकिन वही जब विदेशी परिधान में आती है ये सब कुछ नहीं होता, उसमें माँ नहीं दिखती है, उसमें बहन नहीं दिखती है, उसमें बेटी नहीं दिखती, उसमें देवी नहीं दिखती, उसमें कुछ और दिखता है, तो क्या पहनना है यह आपका चुनाव है। लेकिन मैं यह कहूँगा कि हमारे परम्परागत पहनावों को हमें भूलना नहीं चाहिए। इनका अपना असर है, प्रभाव है। 

आप साड़ी पहनने की बात करते हो, और चीजों की बात करते हैं, अभी हमने जबसे आहार चर्या में श्वेत साड़ी का ड्रेस कोड बना दिया आप में से अनेक महिलाओं ने आकर के कहा ‘महाराज इस श्वेत साड़ी को पहनते ही हमारी भाव दशा बदल जाती है।’ आप रंग-बिरंगे पहनते हैं तब और अभी जो पहनी हैं तब, क्या एक सी अनुभूति होती? थोड़ा जोर से बोलो ताकि तुम्हारी जैसी लड़कियों को प्रेरणा मिले।

रहा सवाल मुस्लिम महिलाएँ सूट पहनती है, सलवार पहनती है। पंजाब में तो महिलाओं के सिर ढकने की भी परम्परा है, मुसलमानों में भी है। एक अपनी परिपाटी है पूरा शरीर ढका है। वस्त्र कोई भी पहने, शरीर को ढकने के लिए पहना जाता है न कि शरीर को दिखाने के लिए, इस बात का ध्यान रखें और सिर ढकने की परम्परा होनी चाहिए। हमारे यहाँ की महिलाएँ आजकल सिर ढकने में अपनी तौहीन समझने लगी जबकि उसका एक गौरव है। अभी कुछ दिन पहले मैंने कहा था कि विदेशों में भी लोग इनके प्रति बहुत जागरूक हैं। अभी अमेरिका से एक मेसेज आया था ‘नो शार्ट क्लोथ।’ क्या पहने और क्या नहीं पहने, देश में वायरल हुआ कि मन्दिर में आप छोटे कपड़े पहन कर के न जाएं। वहाँ के लोगों ने कहा कि ‘मन्दिर में आप छोटे कपड़े न पहनें।’ अभी एक बहन आई थी, चारू, उसके साथ उसकी एक छोटी बेटी थी १३-१४ साल की, मैंने देखा वह जितनी देर मेरे पास बैठी रही, अपने सिर पर दुपट्टा लगा के बैठी रही। केलिफोर्निया, अमेरिका से आई थी, मैं देख कर के दंग रह गया। यहाँ ७०-७० ६५-६५ साल की बुढ़िया भी सिर खोल करके बैठना पसन्द करती हैं। कहाँ जा रहे हैं आप? अपनी मर्यादाओं की सुरक्षा तो आपको खुद करना होगा। एक संकल्प लो गुरुओं के सामने सिर खुला नहीं रखेंगे, ढाँक के रखना, यह मर्यादा है। इतना तो हमें पालन करना चाहिए चाहे विवाहित हो या अविवाहित, गुरु के सामने ये आदर का प्रतीक है। ये विनम्रता और शालीनता का द्योतक है। मन्दिर में जाओ सिर ढको, बाकी दुनिया में तुम जानो।

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