शंका
हिंसा और प्रतिहिंसा में क्या अन्तर है? प्रतिहिंसा से व्यक्ति अपने अन्दर ही अन्दर क्यों विकार ग्रस्त होता रहता है?
समाधान
किसी की हत्या करना हिंसा है और किसी के द्वारा की गई हिंसा के प्रतिरोध में जो किया जाए उसका नाम प्रतिहिंसा है। प्रतिहिंसा सामने वाले के प्रतिरोध में होती है। हिंसा एक प्रकार का ओफेंस है और प्रतिहिंसा में डिफेन्स है। पर प्रतिहिंसा के भाव कई तरीके के होते हैं। एक बार किसी ने हिंसा की, आपने उसका प्रतिवाद किया। कई बार प्रतिवाद नहीं होता लेकिन भावनात्मक कशमकश इतनी होती है, वो प्रतिहिंसा की भावना है, ईर्ष्या, द्वेष, वैर और वैमनस्य जैसे दुर्भावनाओं को जन्म देती है। ये एक बड़ी घातक कषाय है और ये हमारी आत्मा के हनन का कारण है। इसलिए हमें हिंसा और प्रतिहिंसा दोनों से बचना चाहिए।
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