भारतीय शिक्षा प्रणाली को कैसे विकसित करें?

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शंका

अंग्रेजों ने भारत पर राज्य करने के लिए सिर्फ यही कहा की- ‘यदि भारत पर राज्य करना हो तो भारत की शिक्षा पद्धति और उनके संस्कार को एकदम बदल लिया जाए, तो ही हम भारत पर राज्य कर सकते हैं।’ आज भी हम देखते हैं कि बच्चों का स्कूल जाने का समय मन्दिर में अभिषेक का समय होता है जिसमें अधिकांश बच्चे नहीं जा पाते। रविवार के दिन पाठशाला के समय में बच्चों को दूसरी एक्टिविटी हेतु प्रेरित किया जाता है, कभी क्लासेस होते हैं, कभी एग्जाम आ जाते हैं उस वजह से भी बच्चे धर्म के लिए समय नहीं निकाल पाते तो हम कैसे बच्चों को प्रेरित करें?

समाधान

मैकाले (Lord Macaulay) ने १८३५ में ब्रिटिश संसद में अपना बयान दिया था। वक्तव्य दिया था कि ‘भारत पर राज्य करना है, तो हमें यहाँ की पूरी शिक्षा नीति को बदलना होगा और इनके दिल दिमाग में ये बैठाना होगा कि जो कुछ इंग्लिश है वही सही है; हमें इनकी जो संस्कारों की बैकबोन है उसे तोड़ना पड़ेगा।’  उसी नीति पर अंग्रेजों ने काम किया और १८५८ में जाकर भारत में एक एजुकेशन एक्ट ठोंक दिया गया। हमारे जो परम्परागत गुरुकुल थे, उस समय ७००००० गुरुकुल भारत में चलते थे और सारे के सारे गुरुकुल निशुल्क चलते थे। उनकी व्यवस्था राजा करते थे और समाज करती थी। आधी भूमि राजा देते और आधी भूमि समाज और भूमि की उपज से गुरुकुल की व्यवस्था होती। उस समय हमारा भारत विद्या का एक बहुत बड़ा केंद्र था। जब नई शिक्षा नीति अंग्रेज़ी सरकार ने घोषित की, तो उसी दिन से हमारे सारे गुरुकुल अवैध हो गए। हमारे शिक्षकों और अध्यापकों को दंडित किया गया और गुरुकुलों की सम्पत्ति को खुर्दबुर्द कर दिया गया। इस प्रकार एक बहुत बड़ा प्रहार हुआ और उन्होंने अपनी स्कूल की शुरुआत कर दी। शुरुआत में हिंदी माध्यम ज़्यादा था, पद्धति वो थी। धीरे-धीरे, धीरे-धीरे ८० के दशकों के बाद अंग्रेजी माध्यम का बढ़ावा इतना बढ़ गया, बोलबाला इतना बढ़ गया उसे इतना बढ़ावा मिल गया कि हिंदी माध्यम कमतर हो गया। 

सवाल केवल माध्यम का ही नहीं है सवाल पूरे पाठ्यक्रम का है नीति का है। यह नीति भारत के सेहत के अनुकूल नहीं है। भारत को हम भारत तभी बना सकेंगे जब भारत में भारतीयता के अनुकूल शिक्षा दी जाए। पूरे विश्व में पूरे देश में एक बहुत व्यापक चिन्तन भी चल रहा है और वह दिन बहुत सुखद दिन होगा जब भारत में भारत की पुरातन परम्परा के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। हमें उसके लिए प्रयास करना चाहिए। आपने जो कहा है बिल्कुल वर्तमान में जो स्कूली व्यवस्था है खासकर कान्वेंट प्रणाली ने हमारे सारे संस्कारों की अन्त्येष्टि कर दी। वो वहाँ जाने के बाद पूरी तरह संस्कार हीन बनते हैं और हमारी जो परम्परागत धार्मिक संस्कार हैं वह भी नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं। इसके लिए हमें बहुत व्यापकता से सोचना चाहिए, वैकल्पिक व्यवस्थाओं के बारे में भी सोचना चाहिए। 

एक वैकल्पिक व्यवस्था जिसका कई जगह अनुकरण किया गया कि उन्हीं स्कूलों को हम अपने माध्यम से संचालित करें। पद्धति तो वही है नौकर बना करके हमें रख देते हैं और क्या होता है? अभी चपरासी (peon) की परीक्षा भर्ती के लिए ढाई लाख ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट युवकों ने आवेदन दिया। चपरासी की पोस्ट के लिए- ये क्या है शिक्षा का परिणाम? हमें शिक्षा के स्वरूप को लागू करना चाहिए। अभी मुझे मालूम पड़ा गुजरात में साबरमती में हेमचंद्राचार्य संस्कृत पाठशाला के नाम से गुरुकुल चलता है। लड़कों और लड़कियों का अलग-अलग गुरुकुल है, उसका साहित्य मेरे पास आया। मैं पढ़ करके मुग्ध हो उठा, उसमें अभी १०८ बच्चे पढ़ते हैं और १०८ बच्चों के लिए १५० अध्यापक हैं। डिग्री रहित पढ़ाई है, १० साल उसको दो हजार अट्ठारह में हो जाएँगे। उसकी दशाब्दी समारोह मनाने की तैयारी है और कोई डिग्री नहीं। भगवान आदिनाथ के द्वारा प्रतिपादित ७२ कला और लड़कियों के ६४ गुण सिखाए जाते हैं। उनका इतना अच्छा स्किल डेवलपमेन्ट किया जाता है, उसको विभिन्न प्रकार की भाषा जिसमें हिंदी, संस्कृत अंग्रेजी, प्राकृत भी है, गणित, अर्थशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद अन्य चीजें, एथलीट्स वगैरह है, जिमनास्टिक है, घुड़सवारी तक सिखाते हैं; और सारी शिक्षा निशुल्क है और वहाँ जो एडमिशन होता है उसके लिए किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है, केवल जन्मपत्री दिखाना पड़ती है और जन्मपत्री के आधार पर बच्चों का चयन होता है। उनको बहुत अच्छे तरीके से पढ़ाया जाता है और यह स्पष्ट है कि वहाँ से पढ़कर निकलने वाला बच्चा अपने व्यवसाय या अपने व्यावहारिक जीवन में कहीं कच्चा नहीं होता। अपने आप को, अपना जीवन अच्छे से चला देगा तो जीवन परक शिक्षण है। यह हमारे भारत की मूल परम्परा है और इसी अनुरूप हमें प्रोत्साहित करना चाहिए। इस पर पूरे देश के लोगों को चिन्तन करने की आवश्यकता है कि हम अपनी उस भारत की सांस्कृतिक परम्परा को फिर से कैसे विकसित कर सकें ताकि इस तरह की खामियों को हम दूर कर सकें।

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