पुराने समय में बच्चों का बाल विवाह कर दिया जाता था और हम उसको कुप्रथा के नाम से जानते हैं। लेकिन उस समय शायद न तो कोई विजातिय विवाह होता था और न ही कोई बालिका उस समय अपने पेरेंट्स का घर छोड़कर जाती होंगी। यह लव अफेयर वगैरह उस समय पर नहीं होते थे। जो हम लोग कुप्रथा के नाम से जानते थे उसको वापस से सुप्रथा के नाम से शुरू करें?
बाल विवाह के सन्दर्भ में जब हम जैन शास्त्रों को टटोलकर देखते हैं, जैन शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है अव्यस्क स्थिति में किसी भी कन्या का विवाह नहीं होना चाहिए। उसमें लिखा है – ‘जो बाल भाव को उनमुक्त करती है जिसके शरीर के सारे अंगोपांगम पूरी तरह परिपूर्ण हो गए, वह कन्या विवाह के योग्य है।’
पुराने जमाने में जो बाल विवाह की प्रथा थी उसमें बच्ची अपने भविष्य के बारे में कुछ सोच नहीं पाती, जिस किसी के साथ उसका विवाह हो जाता, विवाह के बाद उसका जीवन एक दासता पूर्ण जीवन हो जाता था इसलिए बाल विवाह का समर्थन मैं कभी नहीं करूँगा, ये गलत है। लेकिन हाँ, आज के समय में यह जो चीजें हो रही है इससे बचने के लिए एक सुझाव जरूर दूँगा। सरकार ने जो कन्या के विवाह के लिए १८ वर्ष निश्चित किया है, १८ बच्ची के लिए, लड़के के लिए २१वर्ष जो निर्धारित किए गए हैं अगर उसको फॉलो कर लिया जाए तो सारी समस्यायें हल हो जायें। हमारे शास्त्र के अनुसार कन्या का विवाह होना चाहिए आज युवती का विवाह होता है। कन्या अट्ठारह- उन्नीस साल तक की होती है अधिकतम २० साल और उसके उपरान्त तो वह परिपक्व युवती हो जाती है। आज २५ साल की परिपक्वता जब ब्याह करके किसी घर में आती हैं उसको एडजेस्ट करने में बहुत कठिनाई होती है, उसकी बुद्धि बहुत आगे बढ़ जाती है, प्रखर हो जाती है आपस में सामंजस्य नहीं बनता, तालमेल नहीं होता और चिकित्सक कहते हैं इससे tissues में भी प्रॉब्लम आती है। डाक्टरों की लाइन लगानी पड़ती है, क्योंकि वह आउट ऑफ नेचर जाती है।
१८ साल की उम्र हो और लड़की की शादी कर दो। पढाई-लिखाई? शादी के बाद पढ़ो न, कहाँ दिक्कत है? हमारे गुरुदेव कहते हैं लड़की की शादी कर दो और विवाह के बाद पढ़ो। आज भी ऐसी बहुत सारी महिलाएँ हैं जिन्होंने अपनी सारी पढ़ाई विवाह के उपरान्त की। डॉक्टर विमला जैन है भोपाल में, इन दिनों शायद जबलपुर हाईकोर्ट में जज हैं और वह कुछ भी पढ़ी-लिखी नहीं थी। शायद ९-१० वीं पास थीं और विवाह के बाद पूरी पढ़ाई की, L.L.B. करके जज बनीं, आज हाईकोर्ट की जज हैं। ऐसी अनेक महिलायें हैं जिन्होंने विवाह के उपरान्त अपना कैरियर आगे बढ़ाया है। यदि यह परम्परा पड़ जाए तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान मिल जाए। उसके सुपरिणाम हमारे सामने आ सकते हैं, उनकी तरफ सबको ध्यान देना चाहिए।
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