मैं एक जॉइंट फैमिली में रहती हूँ, हमारी शादी को १५ वर्ष हो गए, परिवार में मुझे आज तक कभी मान-सम्मान नहीं मिला। मैं परिवार वालों के प्रति अच्छा काम करती हूँ तो भी लोग मेरा तिरस्कार करते हैं। मेरे पति भी हमेशा गलत शब्दों का प्रयोग करते हैं, हमेशा मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। सास ससुर भी कभी मेरा पक्ष नहीं लेते हैं जबकि मैं उनके काम आती हूँ। मैं ३ वर्षों से शंका समाधान देख रही हूँ। मैंने आप से पाया कि ‘सहन करोगे तो सक्षम बनोगे’, मैं कितना सहन करूँ? बहू घर की प्रतिनिधि होती है, प्रशंसनीय कार्य करती है, फिर भी घर बैठी बहू की याद नहीं आती जितनी दूर बैठी बेटी की याद आती है। महाराज जी बहू के साथ भी ऐसा होता है कि पति के माता-पिता नहीं दिखते, दूर बैठे अपने माता-पिता दिखते हैं, ऐसा क्यों?
अच्छा करने के बाद भी अच्छा न मिलना, आप लोगों की भाषा में यश नहीं मिलना, ‘जस’ नहीं मिलना, इसके पीछे कारण हैं। मैं कई तरह से इसका उत्तर देता था। जब मैं २०१४ में भगवती आराधना पढ़ रहा था, इसका एक बहुत अच्छा उत्तर मुझे वहाँ मिल गया। इसकी वजह क्या है? इसकी जड़ में जाऊँ तो उसमें लिखा है,- ‘जो लोग अपने वचनों का दुरुपयोग करते हैं, सत्कार योग्य व्यक्तियों के कार्यों का सत्कार नहीं करते, उनकी अनुमोदना न करके आलोचना करते हैं, औरों का तिरस्कार करते हैं उनको ऐसा पाप कर्म बन्धता है कि भावांतर में खूब अच्छा करने के बाद भी कोई उसे अच्छा नहीं कहता।’ बहन जी से मैं यह कहना चाहूँगा इस बात को लेकर हताश न होवें, यह सोचें कि ‘पहले मैंने अच्छा करने वालों को अच्छा नहीं कहा इसलिए आज मेरे लिए भुगतना पड़ रहा है। गनीमत है कि अच्छा करने के बाद इतना भुगतना पड़ रहा है, सुनना पड़ रहा है, अगर गलत करूँगी तो घर से ही निकलना पड़ जाएगा, इसलिए और अच्छा करूँ, समय बदलेगा।’ध्यान रखो! कर्म कटेंगे, लोगों की दृष्टि, लोगों का ओपिनियन मेरे प्रति बदलेगा और सब चीजें परिवर्तित हो जाएगी। ध्यान रखने की बात सीखनी चाहिए।
रहा सवाल सास और बहू का यह तो रोज का ही प्रश्न है। मैं हमेशा कहता हूँ यह सास बहू के झगड़े को मिटाने का एक ही फार्मूला है कि ‘बहू सास को मार दे और सास बहू को खत्म कर दे।’ ‘महाराज कैसी गंदी बात बोल रहे हैं, बहू सास को मार दे और सास बहू को खत्म कर दे?’ पहले ही दिन से दृष्टिकोण बदलिए। ‘यह मेरी नहीं इनकी मम्मी हैं।’ कहते हैं ‘यह इसकी मम्मी है, यह इसके पिता है।’ यह कहो न ‘मेरी सास है’, मेरी माँ नहीं बोल पाते हो तो सासु बोलो, ‘इनकी मम्मी?’ लड़का लड़की दोनों के ये हाल है, तो जहाँ हमारा दृष्टिकोण ऐसा होगा वहाँ पर परिणाम अच्छा कैसे होगा? इसलिए दृष्टिकोण बदलना चाहिए। सास के प्रति पहले दिन से- ‘अब मेरी जो है यही है।’ सास को भी यह सोचना चाहिए ‘मेरी अब जो है यही है।’ मैं तो कहता हूँ, सास बहू को इतना प्यार दे कि बहू अपने मायके का फोन नंबर भी भूल जाए; और बहू सास को इतना सम्मान दें कि सास अपनी बेटी का नाम भी भूल जाए, जीवन धन्य हो जाएगा।
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