आज संयुक्त परिवार विघटित होते जा रहे हैं और जब नन्हा सा बच्चा परिवार को विघटित होते हुए देखता है, तो उसके अन्दर भी वह संस्कार के बीज चले जाते हैं; यह प्रेम खोता जा रहा है- भाई का भाई के प्रति, भाई का बहन के प्रति, माँ-बाप के प्रति। हे गुरुवर, इस विघटित होते हुए परिवार को हम कैसे बचाएँ ताकि यह जो प्रेम है वह परिवार में बना रहे, भाई भाई में बना रहे, बहन बहन में बना रहे?
एक पंक्ति मैं आपके सवाल का उत्तर देता हूँ – हम सहजीवन जीने की भावना जगायें। बचपन से ही बच्चे में ही जब हम उल्टे संस्कार देते हैं तो सहजीवन, परस्परता, बन्धुत्व जैसे उदार मूल्य गोल हो जाते हैं। पहले होता था ‘चाहे जो हो हमें साथ रहना है’; अब संस्कार ऐसे बन गए ‘चाहे जो हो हमें अलग रहना है।’ अब concept बदल गया, वापस सहजीवन की भावना को जगाना होगा। लोगों में जग रहा है, बहुत तेजी से कई लोगों के concept बदल रहे हैं, समझ में आ रहा है कि सहजीवन और संयुक्त परिवार का क्या लाभ है उसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं, हम उन्हें जगायें, अपने सांस्कृतिक मूल्यों को आत्मसात करें और उस परम्परा को आत्मसात करके आगे बढ़े, तभी हम वांछित परिणाम प्राप्त कर सकेंगे।
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