कहते हैं कि बुढ़ापा दूसरा बचपन होता है, क्या यह सही है?
बिल्कुल सही है, बुढ़ापा बचपन का पुनरावर्तन है, लेकिन अन्तर है। एक छोटे बच्चे को शक्ति नहीं होती और बुढ़ापे में व्यक्ति समर्थ नहीं होता। छोटे बच्चे में कुछ समझ नहीं होती और बुढ़ापे में स्मृतियाँ नहीं रहती। बच्चे के दाँत नहीं उगे होते हैं, तो बुढ़ापे में दाँत नहीं टिकते। बच्चों के केश नहीं उगे होते हैं, बुढ़ापे में सिर सफाचट हो जाते हैं। बच्चे अशक्त होते हैं, वृद्ध असमर्थ होते हैं। एक प्रकार से बुढ़ापा बचपन का पुनरावर्तन है।
लेकिन एक बच्चे को समझ के अभाव में कोई कुछ खिलाए-पिलाए, डांटे, प्यार करे कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अभी उसकी बुद्धि का स्तर बड़ा नहीं हुआ है; लेकिन अगर किसी वृद्ध की कोई उपेक्षा करता है, ख़ासकर वही जिसे उन्होंने जन्म दिया है, जीवन दिया, संस्कार दिया, अपनों से ही जब वे उपेक्षा के पात्र बनते हैं, तब उनकी संवेदना को गहरा आघात पहुँचता है। वो कह नहीं सकते, कर नहीं सकते और सह भी नहीं सकते, यह बड़ी बुरी स्थिति होती है। एक अबोध बच्चे को कोई डाँट दे वह चुप हो जाएगा, थोड़ी देर बाद भूल जाएगा लेकिन किसी बुजुर्ग को कोई प्रताड़ित करें तो जीवन भर वह उसे चुभता रहता है इसलिए बच्चों के प्रति प्यार जैसे करते हो, बड़ों के प्रति भी प्यार करो।
आप अपने घर में अपने दूध पीते बच्चे के अनुचित व्यवहार को कितनी प्रसन्नता से झेल लेते हो। बच्चा रात भर रोता है, तुम्हें सोने नहीं देता है, तो भी तुम बहुत खुश होते हो कि चलो कैसे भी मुझे अपने बच्चों को निभाना है। बच्चा कितनी गलतियाँ करता है, कितनी बार कपड़े गंदे कर देता है, तो भी तुम्हारे मन में तकलीफ नहीं होती बल्कि और अधिक प्यार और ममता उमड़ती है। तो जैसे बच्चे की गलतियों को तुम प्यार से स्वीकारते हो वैसे ही अशक्त माँ-बाप की त्रुटियों को भी प्यार से स्वीकार करो और यह सोचो कि ‘आज ये अशक्त हैं, मैं जब पैदा हुआ था तब इन्होंने मेरे लिए कितना किया।’ कोई भी जब नव दंपत्ति मेरे पास अपने बच्चों के साथ आते हैं और बच्चे जब उन्हें परेशान करते हैं, तो मैं उनसे यही कहता हूँ कि अपने बच्चों को पालते समय एक ही बात ख्याल करना, मेरे माँ-बाप ने भी मुझे इतनी ही कठिनाइयों से पाला है, मैं आखिरी तक उनकी आज्ञा पालता रहा हूँ, मेरा जीवन धन्य हो जायेगा।
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