हम बचपन में बच्चों को ऊँगली पकड़कर धर्म करना सिखाते हैं, बच्चों के लिए धर्म सबसे प्राथमिक होता है। लेकिन जब वो बच्चे युवावस्था में प्रवेश करते हैं तब बड़े उन्हें धर्म को secondary (गौण) करने का उपदेश देते हैं। शादी के लिए लड़का पसन्द करना हो तो घर वाले कहते हैं, ‘ये मत देखना कि वो रात को खाता है, आलू- प्याज खाता है, ये सब कॉमन है। तुम स्टेटस देखना, जॉब प्रोफाइल देखना, सैलेरी देखना।’ जबकि बचपन में हमें इन्हीं चीजों का त्याग करना सिखाया है। ऐसे में हम समाज की किस सोच को प्राथमिकता दें- धर्म को दें या धन को दें?
ये लोगों की दोहरी मानसिकता को उजागर करता है। लोगों ने बदली हुई संस्कृति को इस तरीके से स्वीकार कर लिया, उसका ये परिणाम है। पुराने जमाने में जो सदाचारी और संस्कारी युवक-युवती होते थे, लोग उनके संबंधों को प्राथमिकता देते थे। आज संस्कारवान युवक या युवती हो, उनका सम्बन्ध ढूँढना मुश्किल होता है।
तुमने जो बात कही बिल्कुल सही है, सोच को बदलना चाहिए। मैं तो कहूँगा कि हमें अपनी प्राथमिकता को कभी भी नहीं बदलना चाहिए। जो चीजें हमें संस्कार में मिली है उन्हें हमें नहीं खोना चाहिए और अभी तक जो निभाया, हम शादी-ब्याह के नाम पर उसे नहीं तोड़ेंगे। पहले से और दृढ़ हो जाओ। मैं तुम्हारे जैसे युवकों और युवतियों को ये कहना चाहूँगा कि अपने आप में मजबूत हो जाओ और ये कहो कि मेरे भाग्य से अपने आप मेरे लायक जोड़ा मिल जाएगा, मैं समझौता नहीं करुँगा। आज बहुत सारे युवक हैं, तुम एक युवती हो तो तुम्हारे सामने ये समस्या होगी, पर बहुत सारे युवक भी ऐसी समस्या से जूझ रहे हैं। समाज में एक एजेंसी विकसित होनी चाहिए जो ऐसा मैच कर दें। एक सम्बन्ध होने की बात हुई- लड़के का रात्रि भोजन का त्याग था, मन्दिर जाता था, अभिषेक करता था। जब लड़की वालों की तरफ से बात आई तो ये कहा, ‘अरे वो तो बड़ा धर्मी है’, यह कहकर रिश्ता नहीं किया। मुझे आश्चर्य होता है कि शराबी को आप अपनी बेटी देने को तैयार हैं, धर्मी को बेटी देने को तैयार नहीं, तो आखिर परिणाम क्या निकलेगा, हमे उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए और युवक-युवतियों से भी कहूँगा अपने मनुष्य जीवन को व्यर्थ मत करो। धर्म से ही जीवन का कल्याण होगा। इस बात को अपने हृदय में स्थापित करो और अपने जीवन को तदनरूप ढालने की कोशिश करो।
Leave a Reply