बेटे तो अपने मम्मी-पापा की सेवा हमेशा करते हैं, लेकिन हम बेटियाँ कैसे करें?
वाह, बेटे तो मम्मी-पापा की सेवा करते हैं, बेटियाँ कैसे करें? स्वाति मेहता जैसे लाइन को पकड़ लो सब कर लेंगे। मैं तो मानता हूँ आज के समय में बेटियाँँ बेटों से ज़्यादा आगे बढ़ गई हैं। बेटे तो फिर भी माँ-बाप की उपेक्षा कर देते हैं, प्रायः देखने में आता है कि बेटियाँ ज़्यादा माँ-बाप को निभाती हैं।
इसलिए मैं पहला संदेश तो ये कहना चाहता हूँ कि आज के युग में लड़का और लड़की का भेद खत्म कर डालो। ये जो मानसिकता है, कई लोग आ करके कहते हमें बेटियाँ हैं, बेटा नहीं है, ये भ्रम तोड़ डालो। सच्चे अर्थों में देखा जाए तो आज बेटा तुम्हें साथ दे या न दे, बेटी तुम्हारा पूरा साथ निभाएगी। बेटियाँ बेटों से कहीं कम, पीछे नहीं है। बेटी माँ-बाप की सेवा कैसा करें? माँ-बाप की सेवा केवल हाथ पैर दबा कर या उनके भरण-पोषण करके नहीं होता। बेटी को कन्या कहा जाता है और कन्या के लिए कहा गया ‘उभय-कुल-विवर्धिनी कन्या’। जो दोनों कुलों का मान बढ़ाए, वो कन्या है। दो कुल कौन से? एक पति का कुल और एक पिता का कुल। जब तक विवाह न हो तब तक पिता के घर में रहती हैं और जब विवाहित हो जाती है, तो पति के घर जाती है। उसके साथ दोनों कुल जुड़े हैं। तो बेटी दोनों कुल की मान-मर्यादा को सुरक्षित रखे। अपने आचार और विचार को इतना पवित्र बनाए और अपनी मर्यादा का इस तरह से पालन करे कि उसके कुल को लजाना न पड़े। वो कुल के गौरव को बढ़ाए। पढ़ लिख करके आगे बढ़े, समाज सेवा के क्षेत्र में आगे आए और जितना बन सके अपने धर्म की, समाज की सेवा में, कल्याण में अपना योगदान दे, माँ-बाप के गौरव को बढ़ाए, उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाए तो बेटी भी माँ-बाप के लिए बहुत बड़ी सेवा कर सकती है। अगर वो अपने पति के घर में भी जाती है और अपने माँ-बाप के संस्कारों का अनुपालन करते हुए अपने ससुराल की आन्तरिक व्यवस्था को संभालती है और जब उसकी प्रशंसा होती है और ये कहा जाता है कि ये अमुक की बेटी है, ये शब्द जब माँ-बाप के कान में पड़ते हैं उनका रोम-रोम पुलकित हो उठता है। ये भी एक बहुत बड़ी सेवा है।
तो ऐसी सेवा करो जिससे हमेशा तुम्हारे माँ-बाप का गौरव बढ़े। ऐसा कभी मत करो जिससे उन्हें नीचा देखना पड़े, शर्मिंदा होना पड़े। ये ही युगानुरूप आपकी सेवा है।
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