व्यावहारिक जीवन में तीन तरह के लोग देखने में आते हैं। पहले, वे लोग जो रोज मन्दिर में पूजा करते हैं लेकिन इंसानियत का धर्म भूल जाते हैं। दूसरे, जो रोज प्रवचन, शंका समाधान सुनते हैं लेकिन घर में जाकर गुस्सा, झगड़ा, लोगों के प्रति कषाय भाव रखते हैं- इस कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया। तीसरे, वो लोग जो धर्म करते हैं और कहते हैं कि ‘उस व्यक्ति के जीवन में जो परिवर्तन नहीं आया तो हमारे अन्दर परिवर्तन क्या आएगा?’ हमारा धर्म कैसा होना चाहिए ताकि दूसरों को लगे कि मन्दिर जाना, धर्म करना व्यर्थ नहीं है और पाप की जगह पुण्य की बढ़ोतरी हो?
तीन को तो आपने बता दिया, चौथे को मैं बता देता हूँ। मनुष्य को कैसा होना चाहिए? धार्मिक नहीं, धर्मात्मा बनना चाहिए। ‘धार्मिक नहीं, धर्मात्मा बनना चाहिए’ का मतलब धार्मिक वो है जो धर्म की क्रिया करें और धर्मात्मा वह है जो धर्म को आत्मा में बसाये। पूजा-पाठ करे, प्रवचन सुने, सत्संग समागम करे, जितनी शक्ति उतना करे लेकिन अपने जीवन में कुछ अंश में ही सही, उतारे और आज ऐसे लोग भी हैं जो जितना करते हैं, जितना सुनते हैं उतना उतारते भी हैं और ऐसे लोग औरों के लिए प्रेरणा भी बन जाते हैं। मैं युवा वर्ग से खासकर कहूँगा उन लोगों को क्यों देखते हो जो धर्म करके भी धर्म का लाभ नहीं लेते हैं, उन्हें क्यों नहीं देखते जो धर्म करके धर्म की मूर्ति बने हुए हैं, उन्हें अपना आदर्श बनाओ। ये लोग तो प्रोफेशनली धर्म कर रहे हैं। मैं ‘प्रोफेशन’ शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, वो रूटीन बन गया है, करते हैं, जो करते आ रहे हैं। वो अपना जीवन में प्रभावी बनाएँ, उसमें कोई सुनिश्चितता नहीं लेकिन जो लोग अन्तर्मन से जुड़कर धर्म करते हैं उनके जीवन में बहुत परिवर्तन आता है और हमें उन्हीं को आदर्श मानना चाहिए।
देखिए, दो तरह के बीज होते हैं, एक बीज होता है जो अंकुरित होता है, बढ़ता है, उसमें फूल और फल लगते हैं और एक बीज ऐसा होता है जो पौधा तो बन जाता है, फूल और फल नहीं लगता। आपने जिनके नाम लिए वे सब ऐसे बीज हैं जिनमें पौधा तो होगा, फूल-फल नहीं होगा। आज कल जितने हाइब्रिड बीज होते हैं, वैसे ही होते हैं, उससे फसल आएगी, बोओगे तो पौधा बन जाएगा, उसमें फल नहीं लगेंगे। कंपनियाँ ऐसी बना लेती है इसलिए उनको बीज उन्हीं से लेना पड़ता है; और दूसरे लोग ऐसे बीज हैं जिनको बोने से उनमें फल भी लगता है, अपनी नस्ल सुधारने की जरूरत है। नस्ल सुधरेगी, उसमें बीज बोयेंगे, फल आएँगे।
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