आत्मा का ज्ञान कैसे करें? आपकी आत्मानुभूति का अनुभव बताइए?
बाहर के ज्ञान के द्वार बंद कर दो, आत्मा का ज्ञान हो जाएगा। आपसे कोई पूछे कि यह जो लाइट जल रही है किससे जल रही है? विद्युत से। विद्युत दिखाई पड़ रही है? नहीं। तो फिर लाइट कैसे चल रही, अब विद्युत का ज्ञान कैसे करेंगे? जलती हुई लाइट को देखकर, विद्युत का ज्ञान तो तभी करेंगे कि लाइट जल रही है यानि पावर है, लेकिन विद्युत का अनुभव कब करोगे? जब उसको टच करोगे। आत्मा का ज्ञान हम करना चाहते हैं हमें आत्मा की सारी क्रियाएँ दिखती हैं। आत्मा का अनुभव करने के लिए हमें अन्तर्मुखी होना होगा, बाहर के संकल्पों और विकल्पों से जब हम उपर होंगे तब हमें आत्मा का अनुभव होगा तो हमें अपनी अन्तर्मुखता को बढ़ाना होगा।
बाहरी संपर्कों से विरत होकर जब अन्तर्मुखी होते हैं त्यों-त्यों हमारा आत्मा के साथ ज्ञान जुड़ जाता है। वस्तुतः आत्मा का ज्ञान कुछ अलग से नहीं है, ज्ञान को आत्मा में केंद्रित कर देना ही आत्मा का ज्ञान है। हमारा ज्ञान अनात्मा में केंद्रित है। हम किसको जानते हैं? इसको-उसको जानते हैं। जब हम अपने ज्ञान को बाहर दौड़ाते हैं तो हमें इसका-उसका ज्ञान होता रहता है और जब हम अपने ज्ञान को अपने आप में डाल लेते हैं तो सबका ज्ञान खत्म केवल आत्मा का ज्ञान होता है। ज्ञान का मतलब क्या है? आत्मा को जानने का मतलब अपने ज्ञान को ज्ञान में केन्द्रित कर लेना। हम जब तक पर को जानेंगे तब तक आत्मा को नहीं जान सकेंगे। आपने पूछा, आप अपने आत्म अनुभव का कोई अनुभव बताइए- तो गूंगे से कोई गुड़ का स्वाद पूछे तो कैसे बताए। गूंगा गुड़ का स्वाद नहीं बता सकता, वह तो केवल मुँह में डाल कर के सिखा सकता है। बस आ जाइए हमारी तरह लाइन में, आपको भी वही आनन्द आ जाएगा।
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