जैन धर्म में पर्यावरण का क्या महत्त्व है?

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शंका

जीवन के लिए वायु, पानी और भोजन- तीनों बहुत आवश्यक हैं; और जैन धर्म में भोजन व पानी के लिए बहुत सारे नियम बताए गए हैं- जैसे कब, कैसे और कैसा खाना और पीना है? लेकिन क्या वायु के लिए कोई नियम है? क्या वर्तमान की वायु जो प्रदूषित है ग्रहण करने योग्य है?

समाधान

जैन शास्त्रों में केवल भोजन-पानी की बात नहीं की, हर चीज की बात की है। अगर जैन आचार को देखें तो जैन आचार ऐसा आचार है जो पूरी तरह पर्यावरण की शुद्धि की बात करता है। ये कहता है कि भोजन-पानी में ही अशुद्धि से बचने की बात है, वही पर्याप्त नहीं, हवा को भी अशुद्ध करने से बचना चाहिए। एक अनर्थदंड कहा गया है। उसमें कहा कि आप धरती को, पानी को, अग्नि को, वायु को, वनस्पति को अगर आप किसी तरह से इसका मिस यूज़ करते हैं तो ये अनर्थदंड है। अनर्थ दंड यानि एक बहुत बड़ा पाप है, इससे बचिये। आज लोग धड़ल्ले से वायु को प्रदूषित कर रहे हैं इसमें जीव हिंसा होती है इसलिये अपने जीवन का प्रकृति से तालमेल बना करके चलना चाहिए। आपके घर में लगा हुआ A.C. आपको तो आराम दे रहा है, पर पूरे वातावरण को बदल रहा है, बिगाड़ रहा है, ग्रीनहाउस (greenhouse) को प्रभावित कर रहा है। ओजोन की परत में जो समस्या आ रही है, उसके पीछे एक कारण यह भी है। तो हमें चाहिए कि अपनी लाइफ स्टाइल को बदलें और प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर के चले। अहिंसा को अपनाने के लिए यह भी एक आवश्यक कदम है।

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