मन को एकाग्र करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
मन को एकाग्र करने के लिए अभ्यास बनाना चाहिये। सबसे पहली बात तो अपने आसन को ठीक करना चाहिए, स्थिरतापूर्वक एक जगह बैठना चाहिए। जिस विषय के अध्ययन करने के लिए या आज इस विषय के चिन्तन करने की बात हम करना चाहते हैं उसके प्रति अपनी रूचि को बढ़ाना चाहिए। उसके सन्दर्भ में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहिए और उसके बाद मन इधर-उधर भागने लगे तो मन को लौटाने का प्रयास करना चाहिए। मन को धीरे-धीरे मोटिवेट करना चाहिए, जैसे ही मन भागे उससे कहें, नहीं मेरी कोशिश तो कुछ और थी और तुम मन भाग रहे हो, यह ठीक बात नहीं है।
जब मेरी शुरुआत थी, प्रवचन करना होता था तो प्रवचन करने में हर व्यक्ति को सीखने की धुन होती थी। सामायिक में बैठता तो कई बार सामायिक में बैठे बैठे प्रवचन दिमाग में आने लगे कि ‘आज प्रवचन करना है क्या बोलूँ?’ बैठा हूँ सामायिक में और चिन्तन चल रहा है प्रवचन का; हालाँकि वो भी एक प्रशस्त दशा है एक प्रकार का सामायिक ही है स्वाध्याय ही है। तो मैंने एक बार गुरुदेव से कहा- ‘गुरुदेव ये प्रवचन तो मेरे लिए सिर दर्द हो गया।’ ‘क्या बात है?’ ‘महाराज जी, प्रवचन का ऐसा टेंशन और ऐसा प्रेशर रहता है कि सामायिक में बैठता हूँ और प्रवचन की बातें चलती है।’ उन्होंने एक सूत्र दिया था मुझे, उन्होंने कहा कि ‘जिस समय जो काम करो मात्र उसमें ही रमो’, उनकी एक-एक बातें बहुत गहरी होती थी। जिस समय जो काम करो उसमें ही रमो; ‘रमना तो चाहता हूँ पर मन भागता रहता है’। ‘तो मन से कहो कि प्रवचन तो बाद में पहले सामायिक करेंगे, जितना मेरे लिए प्रवचन इम्पोर्टेंट है सामायिक भी उतनी ही इम्पोर्टेंट है, तो अभी मैं पहले सामयिक में रहूँ फिर प्रवचन में।’ एक शब्द कहा था कि ‘तुम्हारी सामायिक अच्छी होगी तो प्रवचन अपने आप अच्छा हो जाएगा’ और आज उनका वरदान मुझे फला है। मुझे अब प्रवचन के लिए तो सोचना ही नहीं पड़ता, णमोकार बोल देता हूँ फिर सोचता हूँ कहाँ से शुरू करूँ? वो आप सब का पुण्य है जो मुझसे बुलवा लेता है, तो कहने का तात्पर्य है कि मन को आप अभ्यास में जोड़ेंगे, एकाग्रता होगी।
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