जैन धर्म बहुत अच्छा है और विज्ञान सम्मत भी है लेकिन सर्वव्यापक नहीं है। इसको सर्व व्यापक बनाने में साधु और श्रावक की क्या भूमिका है?
जैन धर्म की प्रभावना को हमें जन-जन तक पहुँचाने की जरूरत है। सर्वव्यापी हम तभी बना पाएँगे जब मूलभूत जैन तत्त्व ज्ञान का हम ठीक ढंग से प्रचार-प्रसार करें। आज का युग तो टेक्नोलॉजी का युग है। हम यदि इनका ठीक ढंग से उपयोग करें और जैन धर्म के वास्तविक स्वरूप को जन-जन तक पहुँचाए और ये बात बताने में सफल हो जाएं कि जैन धर्म हमारे जीवन के लिए कितना प्रासंगिक है, कितना उपयोगी है, तो आज भी जैन धर्म, एक मात्र जैन धर्म में ये क्षमता है कि वो जन धर्म बन सके। तो हमको उसके लिए प्रयास करना होगा, व्यापक अभियान बनाना होगा।
ये सच्चाई है कि जैनियों ने जैन धर्म के स्वरूप को ठीक तरीके से व्याख्यायित नहीं किया। हमने अपने धर्म को अपने मन्दिर, मूर्तियों और पूजा घरों तक सीमित कर लिया। हमें उसे बाहर निकालना होगा और जन-जन तक पहुँचाना होगा। आज मैं महसूस करता हूँ, मेरे सम्पर्क में ऐसे हजारों लोग हैं जो नियमित मीडिया के माध्यम से मुझे सुनते हैं और उनका दृष्टिकोण बदला। वे अपने जीवन में जैन धर्म का पालन करते हैं। ऐसे अनेक लोग इस सभा में भी बैठे हैं, जो जन्मना जैन नहीं है लेकिन उनका कर्म जैनियों से बहुत-बहुत ऊँचा है। एक ये जयपुर वाला भी मुझे दिख रहा है। इसने दस लक्षण में दस-दस उपवास भी किये और ये विशुद्ध जैन श्रावक है, इसमें कोई अन्तर नहीं है। तो ये एक-एक प्रतीक है। हमारे साथ इतनी संभावनाएँ हैं, उन संभावनाओं को हम विकसित कर सकते हैं। साधु तप करता है, ज्ञान देता है। उसे फैलाने का, पुष्ट करने का, पल्ल्वित करने का दायित्त्व आप सब लोगों का है। जैसे भागचंद जी ने अभी अपनी बात रखी, जैनियों को चाहिए कि हम अपने धर्म की प्रभावना में अपना उत्कृष्टम योगदान दें। किस तरीके से दें? एक अच्छी कार्य योजना बनाएं ताकि हम अपने तत्त्व को सार्वजनिक बना सकें, लोग उससे लाभान्वित हो सकें।
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