जिनसे व्रत-उपवास नहीं होता उन्हें क्या करना चाहिए?
अभ्यास करना चाहिए; जो व्रत-उपवास करते हैं, उनकी सेवा करनी चाहिए। व्रत-उपवास करने वालों की अनुमोदना करनी चाहिए। अपने चारित्र मोहनीय कर्म और वीर्य अन्तराय कर्म के क्षयोपशम का यही उपाय है। तुम से नहीं बनता तो जो व्रत-उपवास करे, उनकी संगति करो, उनके व्रत-उपवास की सराहना करो। कुछ लोग ऐसे हैं जो खुद नहीं करते तो दूसरों को क्रिटिसाइज करते हैं। आलोचना करके और पाप बांध लेते हैं। व्रती की सेवा करो जितना बन सके, उनकी अनुमोदना करो जितना बन सके, तो व्रत और उपवास न कर पाने वाले अगर उनकी सेवा और अनुमोदना करें तो उनका भी क्षयोपशम बढ़ जाता है। दूसरा व्रतियों के संसर्ग में रहो।
मैं कोडरमा में था, एक बहनजी से उपवास नहीं होता था। बोल-, ‘एक दो बार मैंने उपवास किया मेरा पित्त इतना उठ गया कि बस करने की हिम्मत ही नहीं हुई।’ मैंने उनको संबल दिया, ‘कोई चिन्ता नहीं अभी हम हैं ना, मैं भी अष्टमी- चौदस उपवास करता हूँ, तुम करो, कुछ नहीं होगा, होगा तो मेरे पास आना।’ संबल दिया, साहस हो गया, प्रेरणा मिल गई, उसने उपवास किया, पहला उपवास बिल्कुल राइट हो गया, फिर ८ दिन बाद चौदस को दूसरा उपवास किया, वह भी राइट हो गया। अब यह है कि महीने में प्राय: ३-४ उपवास वह कर रही है। सारा पित्त-चित्त सब खत्म हो गया। आपको ऐसा माहौल चाहिए, कुछ लोग ऐसे होते हैं, आप घर-परिवार में व्रत-उपवास नहीं होता तो लोग क्या बोलते हैं, अरे मत करो, तुमको तकलीफ हो जाएगी, तकलीफ हो जाएगी, तकलीफ हो जाएगी, तुम्हारी तबीयत बिगड़ जाएगी, तुम्हे कौन संभालेगा? अगर करने की भी हिम्मत हो तो इन नकारचंदों के कारण हिम्मत खत्म हो जाती है और यदि आप त्यागी साधुओं के बीच रहे या उपवास करने वालों के साथ हो तो, हाँ करलो, हम करते हैं, अच्छा है आपका साहस बढ़ जाएगा। ये व्रत-उपवास करते जिनको नहीं बनता उनको यह कहावत कभी भूलना नहीं चाहिए कि खरबूजा खरबूजे को देखकर ही रंग बदलता है।
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