धन की उपयोगिता न होने पर भी लोग धन के पीछे इतना क्यों लगे रहते हैं?
एक बहुत अच्छा वाक्य है जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया- मनुष्य धन के पीछे तब तक लगता है जब तक उसका निधन न हो जाए। बन्धुओं, धन की दीवानगी का कारण धन की आवश्यकता नहीं, धन की आसक्ति है। हमारा धर्म गृहस्थ को धनार्जन करने का निषेध नहीं करता। धर्म कहता है, जीवन के निर्वाह के लिए आवश्यक धन जोड़ो लेकिन सदैव एक बात का ध्यान रखो कि ये जो पैसे कमाने की तुम्हारी जो प्रवृत्ति है, वो requirement (आवश्यकता) है या desire (इच्छा)। Requirement को पूरा किया जा सकता है, desires (इच्छाएं) endless (अंतहीन) होती हैं, वो कभी पूर्ण नहीं होती।
दूसरी बात- तुम पैसा किसके लिए कमा रहे हो? जीवन के लिए पैसा कमा रहे हो कि पैसे के लिए जीवन खपा रहे हो, इस बात को ध्यान रखो। पैसा हमारे जीवन के निर्वाह का साधन है, साध्य नहीं। बस , इस बात का होश होना चाहिए, इस बात का विचार होना चाहिए। जो व्यक्ति पैसे को ही साध्य मान लेते हैं वे लोग जिंदगी भर पैसे से चिपककर रह जाते हैं और जो व्यक्ति पैसे को जीवन निर्वाह का साधन मानते हैं वे पैसा कमाते हैं पर उसका सदुपयोग करते हैं, उसमें आसक्त नहीं होते हैं।
कल बिल गेट्स (Bill Gates) की बात आई, दुनिया के बड़े धनपतियों में शुमार बिल गेट्स ने इस दुनिया में पैसा कमाया लेकिन उसने केवल अर्थ का संग्रह किया, परिग्रह नहीं। सब समाज के लिए छोड़ दिया। उसने स्टेटमेंट दिया कि ‘यदि मैं ये सम्पत्ति अपनी सन्तान को दूँगा तो न इसमें सन्तान का भला होगा, न समाज का भला होगा’- कितनी उन्नत दृष्टि है। ये विचार करने की बात है। तो आसक्ति यदि मनुष्य की कम होती है, तभी वह धन की दीवानगी छोड़ता है और अपने अर्जित धन का सदुपयोग करता है। इसलिए आसक्ति को कम करने का अभ्यास होना चाहिए।
Leave a Reply