जीवन में लगातार अशुभ हो रहा हो तो धर्म से विश्वास डगमगाने लगता है, धर्म से विश्वास न टूट जाये और आस्था बनी रहे इसके लिए क्या करना चाहिए?
अशुभ संयोग है, और आपको धर्म के प्रति सच्ची आस्था है, तो और आस्था बढ़नी चाहिए, डगमगानी नहीं चाहिए। आपको यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि प्रत्येक जीव को अपने जीवन के शुभाशुभ संयोग को स्वयं ही भोगना पड़ता है। तीर्थंकर और चक्रवर्ती भी इसके अपवाद नहीं हैं। उन्हें भी यह सारे शुभ-अशुभ कर्म का फल भोगना पड़ता है।
अब रहा सवाल कि धर्म का पुरुषार्थ करने के बाद भी अशुभ का संयोग नहीं टलता है, तो हमारे धर्म ने हमारे लिए काम क्या किया? यह प्रश्न कई बार लोगों का उठता है। मैं आपसे पूछता हूँ कि कोई चट्टान मजबूत हो तो उसको तोड़ने की लिए आपको क्या करना पड़ता है। मुट्ठी से आप मिट्टी का ढेला तोड़ सकते हैं, ईंट को एक हथौड़ी के प्रहार से तोड़ सकते हैं, चट्टान को घन के प्रहार से तोड़ सकते हैं; लेकिन कोई सघन चट्टान है, उसके लिए आपको बहुत कड़ा प्रहार करना होगा और एक बार नहीं, अनेक बार प्रहार करना होगा। आपने अनेक प्रहार किये और आपकी चट्टान नहीं टूटी क्योंकि आपकी हथौड़ी छोटी सी है; आप हार मान जाओ की हथौड़ी चट्टान तोड़ ही नहीं पायेगी या घन चट्टान तोड़ ही नहीं सकती, तो इसमें आपके पुरुषार्थ की कमी नहीं, आपकी दिशा की कमी है। आपको यह समझना है कि एक चट्टान जितनी सघन और मजबूत है, उस पर प्रहार भी उतना ही वेगवान होना चाहिए और जितने प्रहार की आवश्यकता है, उतना ही होना चाहिए। निश्चित चट्टान टूटेगी तो उस hammering से ही टूटेगी और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इसलिए यह मान करके चलो कि मेरे जीवन में यदि अशुभ की चट्टान नहीं टूट रही है, तो मेरी hammering में कमी है । धर्म की hammering से ही यह चट्टान टूटेगी, आज न टूटी न सही, कल टूटेगी, परसों टूटेगी, जरुर टूटेगी। ‘मेरी यह hammering निरथर्क नहीं है, यह चट्टान को अन्दर से कमजोर कर रही है और आज नहीं कल मेरा अन्तिम प्रहार होगा जो मुझे अन्तिम समाधान देगी’- इसमें ज़्यादा कुछ सोचने की जरूरत नहीं है।
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