कुंडली का मिलान क्या आवश्यक है?
कुंडली मिलान के सन्दर्भ में मैं बात करता हूँ कि ये हमारी पुरानी परम्परा है, मिलाना चाहिए। ज्योतिष में इसका महत्त्व है। लेकिन आज के युग में मैं जन्म कुंडली और जन्म कुंडली पर आधारित ज्योतिष को पूरी तरह अप्रासंगिक मानता हूँ। हो सकता है मेरी बात ज्योतिष के ज्ञाताओं को थोड़ी चुभे लेकिन मैं इसलिए अप्रासंगिक कहता हूँ क्योंकि आजकल किसी का भी जन्म नैसर्गिक प्रक्रिया से, नैसर्गिक स्थान पर नहीं होता। पहले जन्म घर में होता था। तो कौन व्यक्ति कहाँ जन्म लिया, वहाँ से उसके अक्षांश देशांश की हिसाब से इष्टकाल निकाल कर जन्मपत्री बनाई जाती थी। अब आज शिखरजी का व्यक्ति है, कलकत्ता में जन्म ले रहा है। और अब तो जन्म पत्री पहले बन जाती है, जन्म बाद में सीजर ऑपरेशन होता है। तो उस जीव को जब जन्म लेना था और जहाँ जन्म लेना था, दोनों चीजें चले गई।
ज्योतिष के हिसाब से एक ही हॉस्पिटल के अलग-अलग दो बेड में या अलग-अलग दो वार्ड में, दो बच्चों का एक साथ जन्म हुआ है, तो उनकी जन्मपत्री एक जैसी होगी; क्योंकि जन्मपत्री में जन्म का स्थान और जन्म का समय लिया जाता है। अब मान लीजिये कोलकाता जैसे शहर के किसी एक हॉस्पिटल में एक साथ सौ बच्चों का एक समय में जन्म हुआ और वो सौ बच्चे अलग-अलग दिशा से आए हुए थे, जन्म एक साथ हुआ, उनकी जन्म कुंडली तो एक होगी। अब आप क्या जन्म कुंडली मिलाओगे? इसलिए मेरे हिसाब से जन्म कुंडली मिलाना है, तो मिलाओ, मुझे आपत्ति नहीं पर भाव धारा को जरूर मिलाना चाहिए। आपके भाव और विचार उससे मिलते हैं या नहीं मिलते हैं- ये जरूर मिलाना चाहिए। कुंडली मिले और विचार न मिलें तो जिंदगी भर लड़ाई। इसलिए कुंडली मिलाएं या न मिलाएं, विचारों को जरूर मिलाना चाहिए।
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