जब ध्यान में जाते हैं या स्वाध्याय करते हैं तो कई बार मानस विचलित हो जाता है, केंद्रित नहीं हो पाता है। किस तरीके से मानस को सन्तुलित करके उसमें ध्यान लगाएँ?
मानस को स्थिर करने के लिए स्वाध्याय किया जाता है। और यह बात भी सही है कि स्वाध्याय तभी कर पाते हैं जब हमारा मन स्थिर होता है। तो फिर मन स्थिर कब होगा? जब आपकी स्वाध्याय के प्रति अभिरुचि होगी।
सबसे पहले, आप किसी भी कार्य में लीन होना चाहते हो तो पहली आवश्यकता है उसके प्रति आपकी अभिरुचि जगे। आप इस शंका-समाधान के सत्र को देखते हैं, सुनते हैं, आपको अच्छा लगता है, इस समय आपका मन इधर-उधर भागता है? मुझसे लोग आकार बोलते हैं- ‘महाराज, ६:०० बजने के पहले ही लगता है कैसे घर पहुँचे?’ ये क्यों? ये किसने आपको बोला? मैंने तो आपको बोला नहीं। ये कहाँ से हुआ , ये इसका creation किसने किया? आपकी अभिरुचि ने। तो जिस कार्य में मनुष्य की रूचि होती है, मनुष्य उस कार्य में सदैव लीन होता है। तो जब भी आप स्वाध्याय करें, तो रुचि पूर्वक करें और उन्हीं ग्रंथो का स्वाध्याय करें जिनमें आपकी रूचि और प्रवेश हो, तो अच्छा लगेगा, इंटरेस्ट create होगा, और पढ़ो, और पढ़ो, और पढ़ो। तो मन लगाने के लिए पहले रुचि जगाइए।
आप रुचि पूर्वक पढ़ते हैं, बीच में मन कभी-कभी भटकता है, फिर भागता है, तो संकल्प लीजिए कि ‘मैं पढ़ने के लिए बैठा हूँ, इतना पढ़ूँगा, तभी उठूँगा, ये प्रकरण पूरा करूँगा, तभी उठूँगा।’ मन कह रहा है, चलो-चलो और काम है। रूचि तो है लेकिन प्राथमिकता में दूसरी चीजें आ जाती हैं। ‘अब चलता हूँ, ये देखना है, वो देखना है।’ आप तो एडवोकेट हैं, मान लो clients की फाइलें याद आने लगें, दिमाग घूम जाए। संकल्प! तो रुचि और उसके उपरान्त संकल्प। आप संकल्पपूर्वक मन को कह दो कि मैं हिलूँगा ही नहीं, तब आपका काम होगा। तो रुचि के साथ संकल्प पूर्वक आप जब कार्य करेंगे तो आपका सारा कार्य होगा। इसलिए इसको जगायेंगे, आपको लाभ मिलेगा।
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