हम क्षमा माँग तो लेते हैं पर क्षमा कर क्यों नहीं पाते?

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शंका

“क्षमा वीरस्य भूषणम्” क्षमा के दो पहलू हैं। प्रथम- क्षमा माँगना, द्वितीय -क्षमा करना। हम अक्सर देखते हैं कि लोग बगैर पछतावे के क्षमा माँग लेते हैं। पहले आरोप लगा देते हैं, बुरा-भला कह देते हैं, क्षमा माँग लेते हैं। ऐसे जताते हैं जैसे कुछ नहीं किया है। इसके लिए अंग्रेजी के दो शब्द जुबान पर रहते हैं, excuse me और sorry। क्षमा करने में बहुत देर क्यों लगती है, बहुत कठिनाई क्यों आती है। इसके लिए हमारा मन मस्तिष्क जल्दी तैयार क्यों नहीं होता है?

समाधान

क्षमा एक बहुत बड़ा गुण है लेकिन क्षमा हमारे हृदय में तब तक प्रकट नहीं होती, जब तक हमारे भीतर का ईगो नहीं मिटता। ईगो खड़ा होगा तो, न तो आप किसी से क्षमा माँग सकोगे, न ही किसी को क्षमा कर सकोगे। अगर आप कोई गलती करते हैं, गलती करना और गलती होना इन दोनों में अन्तर है। गलती होना तो स्वाभाविक प्रवृत्ति है।  गलती अगर कर रहे हैं और गलती करने के बाद यदि गलती का एहसास होता है, आपको अन्तर से अपराध बोध होता है और आप क्षमा माँगते हैं, तो ही वो वास्तविक क्षमा है। परिस्थितिवश- ‘मेरी कोई गलती तो नहीं है, फिर भी आप लोग कह रहे हैं तो मैं क्षमा माँग रहा हूँ’- वो क्षमा नहीं है, क्षमा का अविनय है। अन्दर से वो भाव होना चाहिए। तो गलती हो, गलती का एहसास हो तो हम क्षमा माँगे, तब क्षमा का मतलब है। 

कोई व्यक्ति क्षमा माँग रहा और हम उसे क्षमा करें। हम किसी को क्षमा तभी कर पाएँगे जब हमारे अन्दर उसके प्रति आत्मीयता होगी, उसकी गलती को छोड़ देने का भाव होगा। हमारा ego कहता है ‘हम कैसे क्षमा कर दें, उसने तो मेरा ऐसा नुकसान पहुँचाया, उसने तो मुझे अपमानित किया, उसने मुझे भला-बुरा कहा, उसने मेरी insult की.. हम उसे कैसे क्षमा कर दें।’ जब तक ‘हम कैसे कर दें..’ ये हमारे अन्दर का ईगो जीवित रहेगा, क्षमा का भाव नहीं होगा। ‘नहीं भाई ठीक है, हो जाने दो, कर दिया, वो क्षमा माँग रहा है। चलो मेरा क्या बिगड़ा.. , बोला दिया था, मन में उबाल आ गया, अपने आपको नहीं सम्भाल पाया, अब वो अपनी गलती का एहसास कर रहा है’ क्षमा कर दो, मामला रफा दफा। तो जब तक हमारे भीतर की कषाय पलती रहेगी क्षमा का नाटक होगा, क्षमा नहीं होगा। क्षमा तभी प्रकट होती है जब हमारा मन साफ होता है।

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