पहले के समय में मजदूर लोगों की बहुत पूछ होती थी लेकिन आज उनका कोई वजूद नहीं है। आज सिर्फ ‘smart’ (होशियार) को दुनिया पूछती है, ऐसा क्यों ? हम अपने आपको ज़्यादा से ज़्यादा innovative कैसे बना सकते हैं?
मैं समझता हूँ कि पुराने जमाने में हमारी जो शिक्षा दीक्षा होती थी, वह इतनी व्यापक (ब्रॉड) और परिपक्व होती थी कि हर व्यक्ति के अन्दर कोई न कोई हुनर होता था, कोई न कोई गुण होता था, कोई न कोई कला होती थी, कौशल का विकास होता था। आज की भाषा में कहूँ तो हमारा कौशल बहुत विकसित होता था और उस समय हम स्किल (कौशल) के आधार पर ही अपने आपको आगे बढ़ाते थे। उसका यह परिणाम था कि भारत बहुत समृद्ध राष्ट्र था, भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। आज की जो शिक्षा है, आदमी के पास डिग्री बड़ी- बड़ी होती है, कौशल (skill) शून्य होता है। उसके पास हुनर नहीं होता, उसके अन्दर का कौशल विकसित नहीं होता।
फिर स्मार्ट की बात करते है, तो आज के स्मार्ट होने की पहचान भी बदल गयी। पहले उसे महत्त्व मिलता था और उसे स्मार्ट समझा जाता था, जिसके पास कोई विशेष गुण हो, कला हो, हुनर हो; और आज स्मार्ट उसे माना जाता है, जो ब्रांडेड चीजें पहने हुए हो, जिसके पास ब्रांडेड कपड़े हो, ब्रांडेड गैजेट्स हो, महँगी चीजें हो, जो महँगी गाड़ी में घूमता हो, महंगे घरों में रहता हो, लच्छेदार अंग्रेजी बोलता हो, यही है न स्मार्टनेस का रूप, इसी के पीछे भागते हैं न आप लोग? आज का होशियार अन्दर से पोला है, कुछ भी हो जाए तो कुछ नहीं कर पाएगा। स्मार्टनेस की यह वास्तविक पहचान नहीं है। सच्चे अर्थों में स्मार्ट वही है जिसके अन्दर स्किल हो। स्मार्ट व्यक्ति की पहचान मुझसे पूछो, तो मैं कहूँगा कि सब बर्बाद होने के बाद भी जो भूखा न रह सके, वह स्मार्ट है। जिसके पास इतना हुनर है, इतनी क्षमता है कि सब मिट जाए तो भी, अपना पेट भरने की सामर्थ्य रखता हो, वह स्मार्ट है। एक जमाना था कि भारत का एक- एक व्यक्ति ऐसे ही स्मार्ट था। इसलिए भारत में एक भी भिखारी नहीं मिलता था और आज दुनिया पढ़ लिख करके आगे बढ़ गई, व्यवस्थाएँ बिल्कुल उलट गई और आज पढ़े-लिखे भिखारी भी हमको बहुत ज़्यादा देखने को मिल जाते है। ये हमारे लिए सोचनीय है।
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