मेरी सहेली इस लॉकडाउन के दौरान बहुत ही अकेली और डिप्रेस्ड महसूस कर रही है। घर में वो और पति दोनों ही रहते हैं, इकलौती बेटी है जिसकी शादी हो चुकी है। उनके जीवन में ऐसी कोई समस्या भी नहीं जिससे दुखी होना पड़े। ‘भविष्य में हम दोनों अकेले हैं’ यही समस्या उन्हें खाई जा रही है, पति भी रिटायर हो चुके हैं, भावना योग और स्वाध्याय करने में उनका मन नहीं लगता जबकि उसे स्वाध्याय में विशेष रूचि थी। आपके उद्बोधन से निश्चित ही उन्हें राहत मिलेगी, यही आपके चरणों में विनम्र विनती है।
बहुत लोगों के साथ इस तरह की स्थितियाँ बनती हैं। ऐसे लोगों को एकत्व भावना का चिन्तन करना चाहिये। हम अकेले हैं, संसार में सब अकेले हैं, कोई किसी का कहाँ है? हम आये अकेले, जाएँगे अकेले,
जन्मे मरे अकेला चेतन सुख-दुःख का भोगी और किसी का क्या है एक दिन देह जुदी होगी।
जाना तो सबको है लेकिन इस बात का मलाल मन में मत रखिए। हम संसार में हैं, नदी-नाव संयोग है जिसके साथ जितने दिन का साथ है, है। यह ध्यान रखना है कि हर व्यक्ति अपने-अपने कर्मों के अनुरूप संयोगों को प्राप्त करता है। इसलिए इसकी चिन्ता मत करिए, हर व्यक्ति का अपना पुण्य-पाप है और उसी पुण्य-पाप के अनुरूप वह अपना जीवन जीता है। जो कल देगा वह कल की व्यवस्था भी देगा। अगर हमारा आज निकल गया तो कल भी निकल जाएगा, इसको लेकर के ज़्यादा चिंतित और व्यथित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मन में इस तरह की भावना लाने की जगह एकत्व की भावना लाइये और अपनी आत्मा का चिन्तन करिए। कल्याण तो तभी होगा जब तुम अपनी आत्मा में केन्द्रित रहोगे।
पर से अपेक्षा रखना महान दुखदाई होता है। हम किसी से भी अपेक्षा रखें, दूसरा हमारी अपेक्षा की पूर्ति करे यह कोई जरूरी नहीं है क्योंकि अपेक्षाएँ संयोगों के ऊपर निर्भर करती हैं, पूर्ण हों और न भी हों। इसलिए आप अपने मन को बदलें। थोड़ा प्रवचन, चिन्तन और सत्संग से अपने आप को जोड़ने की कोशिश करें, यदि इसमें जोड़ेंगे तो मन थोड़ा हल्का होगा। अपने आप को इंगेज करें, अच्छे कार्यों में इंगेज करें। आप, जो अपने आप को अकेला महसूस करते हैं, घर में हैं, सक्षम हैं, थोड़ा उन लोगों के साथ समय बिताना शुरू कर दें जो गरीब हैं, अभाव ग्रस्त हैं, जिनका कोई सहारा नहीं है। उनके बीच थोड़ा समय बिताना शुरू करें आप को अच्छा लगने लगेगा। या तो अपनी आत्मा में डूबो या तो समाज की सेवा में लगो-जीवन को आगे बढ़ाने के यह दो ही रास्ते हैं। और अगर यह दोनों नहीं कर सकते, थोड़ा सत्संग का अभ्यास बना लो, पता ही नहीं लगेगा समय कैसे बीतता है।
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