हम मनुष्य emotions (भावनाओं) पर ही अटक कर कई दिनों तक दुखी हो रहे होते हैं और इमोशनल ड्रामा अधिक कर लेते हैं न कि आगे क्या करना है इसका एक्शन प्लान करते हैं। गुरुदेव, इमोशंस को हाँ और इमोशनल ड्रामा को ना करने के लिए क्या करें?
प्रश्न का सार केवल यह है कि इमोशनल एवं इमोशनल ड्रामा में अन्तर कैसे हो? मैं तो केवल इतना कहता हूँ कि मनुष्य अगर अपने इमोशंस पर नियंत्रण रखने की कला सीख ले, उसके जीवन का सारा ड्रामा ही खत्म हो जाये। आत्म संयम के बल पर हम अपने इमोशंस पर नियंत्रण ला सकते हैं, हमारे पास संयम होना चाहिए जिससे हम अपनी भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण रख सकें। इसके लिए आप नियमित भावना योग करें। भावना योग की प्रार्थना है “हे प्रभु मुझे ऐसी शक्ति दे कि जीवन के सब प्रकार के उतार-चढ़ाव में मैं स्थिरता रख सकूँ। हे प्रभु! इतना आत्म संयम दे कि मैं हर स्थिति में अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख सकूँ।” यह भावनायें आप उत्तरोत्तर बढ़ाइए, इमोशंस रहेंगे पर उनकी बाढ़ नहीं आएगी।
इमोशनल ड्रामा है जिसे आप ड्रामा शब्द कह रहे, मैं ड्रामा नहीं कहता हूँ उसे भावातिरेक मानता हूँ। यह भावातिरेक भावनाओं पर अनियंत्रण का कुफल है। तत्वज्ञान के बल से जीवन की वास्तविकता को समझने वाले लोग इस तरह की भावनाओं के बहाव में नहीं बहते, वे अपने अन्दर स्थिरता और ठहराव बनाये रखते हैं। हम भी ऐसा कर सकते हैं, आध्यात्ममूलक दृष्टि जिसके अन्दर होती है वो ऐसी स्थिति में कुछ भी हो जाए, जो हो गया, सो हो गया और अपने आप को सम्भाल लेते हैं। मेरे सम्पर्क में ऐसे अनेक लोग हैं जिनके जीवन में बड़े-बड़े उतार-चढ़ाव आए लेकिन उन्होंने उस घड़ी भी अपने अन्दर स्थिरता रखी है। ऐसा नहीं है कि हम अपनी भावनाओं पर नियंत्रण न रख सकें। अभ्यास के बल पर भावनाओं पर नियंत्रण लाया जा सकता है।
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