जैन आगम में उस ग्रन्थ का नाम बतायें जिसमें रजस्वाला स्त्री तीन दिन तक अशुद्ध रहती है, ताकि नई पीढ़ी को बता सकूँ और वो पूछते है कि किस तरीके से उल्लेख आया और उसकी पूजा आदि कैसे करते हैं?
रजस्वला स्त्री के सन्दर्भ में सागार धर्मामृत में उल्लेख आता है, तिलोयपन्नति में भी आता है। उसमें ये आता है कि जो रजस्वला स्त्री के साथ दान करते हैं रजस्वला अवस्था में दान करते हैं वो कुदान है वा दायुक दोष से ग्रसित है और त्रिलोकसार के अनुसार वो कुनर होते हैं (यानि कुभोगभूमि में जाते हैं)। एक जैन व्रत विधान संग्रह नाम से बारेलाल जी वैद्य की एक कृति है। उस कृति में एक कारिका मुझे मिली, उसमें लिखा है कि
शुद्धा भर्तुश्चतुर्थेऽन्हिं, भोजने रन्धनेऽपि वा।
देवपूजा गुरूपास्ति होमसेवा तु पंचमे।।
कोई स्त्री तीन दिन एकदम अशुद्ध होती है। चौथे दिन स्नान करने के बाद शुद्ध होकर वो अपने पति की सेवा और भोजन बना सकती है। पाँचवे दिन ही वह देव पूजा, गुरू की उपासना और होम, सेवा आदि कर सकती है। पाँचवे दिन से पहले नहीं, पाँचवे दिन भी तभी जब वह शुद्ध हो तब।
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