जब कुछ चीज लेनी होती है, लोग काफी विनम्र व्यवहार करते हैं। काम निकलने के बाद उद्दण्ड व्यवहार करते हैं। तो क्या ये उचित है और उन लोगों को कैसे समझाया जा सकता है?
बहुत अच्छी बात कही है। ऐसा कहा जाता है कि ‘जब जरूरत पड़ती है, तो गधे को बाप बना लेते हैं और मतलब निकल जाये तो बाप को गधा बनाने में देर नहीं लगती है।’ ये युग की बिडम्बना है। भारत की संस्कृति में एक शब्द आता है- कृतज्ञता। ऐसा कहा गया है कि अवसर पर किसी के द्वारा किया गया छोटा सा कार्य भी बड़ा महान होता है, और जिस किसी व्यक्ति ने हमारे जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का उपकार किया है, चाहे छोटा सा ही क्यों न हो, उसे जीवन भर कभी भूलना नहीं चाहिए।
“न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति”।
किये गये उपकार को सतपुरुष नहीं भूलते। तुम्हारे ऊपर किसी ने कभी उपकार किया है, तो उसे कभी भूलो मत। उपकार को मानना कृतज्ञता है, और उपकार को न मानना कृतघ्नता है। कृतज्ञता को बहुत बड़ा गुण कहा गया है, और कृतघ्नता को एक बहुत बड़ा पाप कहा गया है, नीचता की पराकाष्ठा।
शास्त्रकारों ने लिखा कि,
ब्रह्मघ्ने च सुरापे च चौरे भग्न-व्रते शठे ।
निष्कृतिर् विहिता सद्भिः कृतघ्ने नास्ति निष्कृतिः ॥
गाय की हत्या कर ले, शराब पी ले, चोरी कर ले, व्रत खण्डित कर ले, उस जीव का प्रायश्चित से उद्धार सम्भव है, लेकिन कृतघ्नी का उद्धार कभी सम्भव नहीं है। “कुरल काव्य” में लिखा है कि अन्य सब पापियों का तो फिर भी उद्धार सम्भव है, लेकिन अभागे कृतघ्न का कभी उद्धार नहीं होगा। इसलिए अपने मन में ये बात स्थापित करें, कि मैं अपने जीवन में किसी के उपकार को विस्मरण न करूँ। जीवन भर याद करूँ, जीवन भर उसे याद रखूँ। कभी उसे भूलूँ नहीं। ये हमारा धर्म है, ये हमारा कर्तव्य है, और इसको ध्यान में रखकर के चलने वाला व्यक्ति कभी भ्रमित नहीं होता।
मैंने पढ़ा कि पं. मदन मोहन मालवीय के जीवन में कभी कोई कठिनाई का दौर आया। उस समय उनके एक मित्र थे उन्होंने देखा कि इन्होंने बहुत सारी चिट्ठियाँ लिख रखी हैं लेकिन पोस्ट नहीं हो सकीं। उन्हें देखते ही समझने में देर नहीं लगी कि पोस्टेज के अभाव में पोस्ट नहीं हुई होंगी। उन्होंने एक रूपये के पोस्टेज मँगवाये और सारी चिट्ठियाँ पोस्ट करवा दीं। उनका काम अच्छे से बन गया। उपकार फिर भी नहीं चुका सकता। इतना बड़ा आपका उपकार है।
जीवन में दो बातें याद रखो कि जब किसी पर कोई उपकार करो तो पानी की लकीर बना डालो। क्या पानी की लकीर कभी दिखती है? एहसान कर के भूलो, एहसान लेकर नहीं। कभी किसी के ऊपर कोई उपकार करो तो पानी की लकीर की तरह भूल जाओ। दूसरा, तुम्हारे लिए कोई छोटा सा भी उपकार करे तो उसे पत्थर की लकीर बनाकर अपने हृदय में अंकित कर लो। जिंदगी में कभी मत भूलो। ये तुम्हारे जीवन की ऊँचाई का आधार होगा। कभी भूलना नहीं चाहिए ये आपके जीवन का कर्तव्य है। नीतिकार कहते हैं कि सज्जन पुरुष वे होते हैं जो दूसरों के उपकार का कभी विस्मरण नहीं होने देते हैं।
एक कवि ने बहुत अच्छी बात कही कि प्रकृति भी अपने द्वारा किये गये उपकारी के उपकार को विस्मरण नहीं करती। कवि तो कवि होता है उसने बहुत अच्छा उदाहरण दिया कि नारियल में पानी होता है। क्यों होता है? आप लोग नारियल पानी पीते हो। नारियल में पानी क्यों होता है?
प्रथमवयसि पीतं तोयमल्पं स्मरन्तः शिरसि निहितभारा नारिकेला नराणाम् ।
ददति जलमनल्पास्वादमाजीवितान्तं न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ॥
वो नारियल का पेड़ कहता है कि जब मैं छोटा था तो उस पेड़ लगाने वाले ने मुझे रोज पानी दिया। पानी दे देकर सींच कर मुझे बड़ा किया, खड़ा किया। उसके उस पानी से मैं खड़ा हुआ। तो जब मैं बड़ा हुआ तो मुझे लगा कि उनका मुझ पर बड़ा उपकार है। कितना बड़ा सहारा उसने मुझे दिया। अगर मुझे बचपन में पानी नहीं पिलाया होता, तो आज मैं खड़ा नहीं होता। तो उसी उपकार का मूल्य चुकाने के लिए नारियल अपने सिर पर कलश भर भर के जल रखता है कि मैं उसे वापस चुकाऊँ।
कभी भूलो मत। आज कल कृतघ्न मनुष्यों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। औरों के प्रति कृतघ्नता की बात क्या करूँ? माँ-बाप के प्रति लोग कृतघ्न हो जाते हैं। जीवनदायी लोगों के प्रति कृतघ्न हो जाते हैं। एक व्यक्ति आया मेरे सम्पर्क में वह बहुत अभाव ग्रस्त था। उसको दूसरों ने पढ़ाया। पढ़ाने के बाद वह योग्य हो गया, एक अच्छी कम्पनी में जॉइन कर लिया। आज अच्छा वेतन कमा रहा है। एक दिन मैंने ऐसे ही पूछा कि तुम को जिसने पढ़ाया उसको कभी याद किया? चेहरे के हाव भाव से लगा कि उसकी डायरी में वो नाम ही नहीं है। मैंने कहा कि तेरे जैसे नीच व्यक्ति का कभी उद्धार नहीं होगा। विचार कर कि जब तेरे पास खाने की व्यवस्था नहीं थी तब इन्जीनियरिंग की पढ़ाई किसी ने कराई निस्वार्थ भाव से, धर्म भाव से! सामने वाले को कोई आशा और अपेक्षा नहीं किन्तु तू ऐसा कृतघ्नी बन गया? मैंने उसे झकझोरा तो उसकी आत्मा हिल गयी, और बोला कि ‘महाराज जी गलती हो गई। आज ही फोन करके बात करता हूँ।’ जब तुझको जरूरत होती थी तब तू हर महीने फोन करता था। अब जब तू साहब बन गया तो भूल गया? फोन करके उनसे क्षमा माँग। तू असमर्थ था तुझे किसी ने पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया। ये संकल्प ले कि ‘सबसे अच्छी मेरी कृतज्ञता तब होगी जब अपने जैसे १० युवकों को मैं पढ़ाऊँगा। साल में एक की व्यवस्था करूँगा ताकि वो भी खड़ा हो सके।’ एक दूसरे को प्रोत्साहित करने का परिणाम बहुत अच्छा होता है। कृतघ्न व्यक्ति की दुर्दशा कैसी घृणित होती है।
एक छोटा सा प्रसंग सुनाकर के बात को पूरी करता हूँ। एक चाण्डालनी अपने सिर पर एक टोकरी रखे थी जिसमें मरा हुआ कुत्ता था। एक हाथ मैल से सना हुआ था और दूसरे हाथ में खप्पर था। मैल भरे हाथों से गंगा जल छिड़कती हुई गंगा नदी की ओर से आ रही थी। इधर से एक ऋषि गंगा स्नान को जा रहे थे। ऋषि ने जब उस चाण्डलनी की दशा को देख तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। बोले कि मैं क्या देख रहा हूँ कि तेरे सिर पर मरा हुआ कुत्ता, एक हाथ में खप्पर, दूसरा हाथ मैले से सना फिर भी तू ये गंगाजल छिटकने का नाटक क्या कर रही है, इतनी अशुद्ध होकर भी? तो उस चाण्डालनी ने जो बात कही वह बहुत गम्भीर है सुनने लायक है। उसने कहा कि ‘हे ऋषि महाराज! आप तो ठहरे ऋषि आप क्या जानो कि दुनिया क्या होती है। निश्चित मैं मलिन हूँ पर मैं अभी उतनी मलिन नहीं हूँ।’ बोले ‘क्या मतलब?’ ‘अभी-अभी मेरे आगे-आगे एक कृतघ्न इधर से निकला है। मैं नहीं चाहती कि उस पापी कृतघ्न की धूल मेरे शरीर को लगे इसलिए मैं गंगा जल छिड़कते हुए जा रही हूँ। मेरे से भी नीच है वह।’अधम से भी अधम वो होता है जो कृतघ्न होता है। ऐसी प्रवृत्ति से अपने आप को बचाना चाहिए।
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