ब्रह्मचर्य का क्या अर्थ है? क्या विवाहित व्यक्ति गृहस्थी जीवन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है?
आचार्य उमा स्वामी ने ब्रह्मचर्य शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा “मैथुन अब्रह्म“- मैथुन की क्रिया का नाम अब्रह्म है;और इस दृष्टि से देखा जाए तो जो मैथुन के त्यागी हैं वो ब्रह्मचारी हैं। पर हमारे आचार्यों ने ब्रह्मचर्य की जिस तरह की व्याख्या की, बहुत उच्च है। ब्रह्मचर्य की उत्कृष्ट व्याख्या तो ये है कि केवल स्त्री पुरुष का एक दूसरे से दूर होने का नाम ब्रह्मचर्य नहीं है, शरीर की अपवित्रता को ध्यान रखते हुए देह बुद्धि से ऊपर उठने का नाम ब्रह्मचर्य है। आचार्य समंत भद्र महाराज ने लिखा “मल योनि मल बीजं” शरीर को मल का योनि, मल का बीज, दुर्गन्ध से युक्त, वीभत्स मानते हुए, देखते हुए जो शरीर को इस रूप में देखते हुए काम से विरत होता है वो ब्रह्मचर्य।
इस ब्रह्मचर्य की साधना का अभ्यास गृहस्थ भी करता है। गृहस्थ के लिए दो तरह से ब्रह्मचारी होना बताया। एक गृहस्थ जो सदार सन्तोष व्रत का पालन करता है, वो अपनी पत्नी के अतरिक्त संसार की सारी स्त्रियों में माँ, बहन और बेटी जैसी पवित्र दृष्टि ले आता है- तो एक के अतिरिक्त बाकी सबके लिए वो ब्रह्मचारी है। और दूसरा वह जब अनासक्ति के रास्ते पर आगे बढ़ जाता है और स्त्री मात्र के संसर्ग का त्याग कर देता है, तो सात प्रतिमा ले लेने पर घर में रहते हुए भी ब्रह्मचारी कहलाता है।
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