शंका
महाभारत में भीष्म पितामह को अधर्म की तरफ से युद्ध करना पड़ा था। क्या ऐसे समय पर स्वधर्म को परम-धर्म के ऊपर रखना सही था? हमारे जीवन में स्वधर्म और परम धर्म में क्या ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है?
समाधान
आपने महाभारत के सन्दर्भ में प्रश्न पूछा है कि महाभारत में भीष्म पितामह जानते-समझते हुए भी कौरवों के पक्ष में लड़े यानी अधर्म का साथ दिया। आप यह पूछना चाह रहे हैं कि अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के आगे परमार्थ को गौण करना क्या ठीक है? स्वधर्म और परम धर्म से शायद आपका यही आशय है। यही मोहविष्ट जीव की परिणति है। मोही जीव अपने स्वार्थ को प्रधानता देता है और ज्ञानी जीव सदैव परमार्थ को प्रधानता देता है। यदि उनके अन्दर उस घड़ी ज्ञान होता तो ऐसा नहीं होता; या तो वे तटस्थ हो जाते या वैरागी बन जाते, पर अन्याय का साथ नहीं देते।
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