धर्म में समय देने से क्या पुण्य का बन्ध होता है?
एक बार गुरुदेव ने बहुत बड़ी बात कही। किसी सन्दर्भ में, एक दातार ने कहीं दान दिया। दान देने के बाद किसी ने शिकायत कर दी तो उसने अपने द्वारा घोषित धनराशि न देकर के कार्यकर्ताओं से कह दिया कि ‘भाई हम ब्याज़ पर पैसा देंगे, दान नहीं देंगे।’ कार्यकर्ताओं ने गुरुदेव के चरणों में बताया कि ‘महाराज अमुख व्यक्ति ने आपके समक्ष इस दान राशि की स्वेच्छा से घोषणा की थी, उन्हें कुछ लोगों ने दिग्भ्रमित कर दिया। उन्होंने पैसा रोक लिया और यह इतना रुपया ब्याज़ के रूप में भेजा है, अब क्या करें?’ गुरुदेव ने बहुत सहजता से अपनी बात कही और कहा, ‘जिन लोगों को हमारे कार्यकर्ताओं पर विश्वास नहीं है, उनके दान की कोई जरूरत नहीं है। दातार बहुत मिलते हैं पर कार्यकर्ता बहुत दुर्लभता से मिलते हैं।’ इस बात से समझ लो समय देने का कितना महत्त्व है।
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