मेरा प्रश्न यह है कि जो नरक में जन्म लेते हैं – नारकी जीव, उनका कभी कोई तीव्र साता वेदनीय कर्म उदय में नहीं आता क्या?
नारकियों में प्रायः असाता वेदनीय कर्म का उदय होता है। असाता वेदनीय और साता वेदनीय कर्म के विषय में एक बात सुन लो। संसार में सुख अल्पकाल के लिए होता है और दुःख लंबे काल के लिए। शास्त्र का विधान है (धवला में ऐसा आया है) कि किसी भी जीव को सातावेदनीय की यदि उद्दीरणा होगी तो ६ महीने से ज़्यादा नहीं होगी। और असाता वेदनीय की उद्दीरणा होगी तो ३३ सागर तक चल सकती है। दुःख का काल बहुत लम्बा होता है। नारकियों में क्षेत्र के प्रभाव से असाता का ही उदय होता है ज्यादातर। पर तीर्थंकर आदि के कल्याणकों के काल में कुछ काल के लिए साता होता है। लेकिन वो साता कैसी होती है? बहुत बड़े हॉल में एक छोटा सा बल्ब कितनी लाइट देगा? वह ज़्यादा powerful नहीं रहता। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के अनुरूप अपना फल देता है।
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