गुरुओं की वाणी है कि सोते समय पूर्व या फिर दक्षिण की तरफ सिर होना चाहिए और ध्यान लगाते समय पूर्व या उत्तर की तरफ सिर होना चाहिए। इसका कारण क्या है और इसके न होने से क्या-क्या दुष्परिणाम हो सकते है?
इसके बड़े वैज्ञानिक कारण हैं। हम लोगों के शरीर के दो भाग हैं- नॉर्थ पोल और साउथ पोल। हमारे सिर का भाग नॉर्थ पोल है और पैर का भाग साउथ पोल। यदि कोई व्यक्ति उत्तर सिर करता है, तो नॉर्थ टू नॉर्थ होता है, तो विकर्षण होता है, नींद अच्छी नहीं आती। नॉर्थ टू साऊथ होता है, तो नींद अच्छी आएगी, आकर्षण होता है।
सामान्य रुप से सोने के लिए सबसे उत्तम दिशा है दक्षिण की तरफ सिर करना, उत्तर की तरफ पैर करना। उत्तर की दिशा हमारे अभ्युदय और उन्नति का प्रतीक है। ऊर्जा का प्रवाह उत्तर से आता है और शक्ति का संचार पूर्व से होता है। उत्तर की तरफ अगर पैर करके सोते हैं तो उठते ही हमारी दृष्टि उत्तर की ओर हो जो हमारे लिये ऊर्जा उत्पन्न करे, ये भी एक कारण है। इसी ज्ञान को ध्यान में रखते हुए किसी समाधि में रत या मरणासन्न व्यक्ति के लिए कहा गया कि जब व्यक्ति की उल्टी साँसे चलने लगे, वह मरणासन्न हो तो उसके पाँव दक्षिण में कर दो ताकि उसके प्राण आसानी से निकल सकें।
इसी तरह पूर्व और उत्तर में मुख करके सामायिक करने की जो बात कही है वह इसलिए हमारे यहाँ उत्तर में सुमेरु पर्वत है, विदेह क्षेत्र है और पूर्व जहाँ से प्रकृति प्रकाश फैलाती है, तो पूर्व दिशा ज्ञान का प्रतीक है। हम ज्ञान और समाधान पाना चाहते हैं इसलिए पूर्व अथवा उत्तर दिशा में मुँह करके सामायिक करते हैं।
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