पुराने समय में लड़के गुरु महाराज और लड़कियाँ आर्यिका माता के पास शिक्षा ग्रहण करते थे। आज के समय में ऐसा नहीं होता है, शादी के बाद वे तुरन्त दूसरे शहरों में चले जाते हैं, उनको लोक व्यवहार, सन्तति और धर्म व्यवहार आदि के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं मिल पाती, उसके लिए आज के समय में क्या किया जाए?
आज शिक्षा का स्वरुप बदल गया है। उच्च शिक्षा आज की अनिवार्यता हो गई, उसके लिए अपने बच्चों को बाहर भेजना भी माँ-बाप की मजबूरी हो गई। मैं उसका विरोधी नहीं हूँ, ये होना चाहिए लेकिन इसका जो साइड इफेक्ट हो रहा है उससे समाज को बचाने के लिए कुछ सार्थक प्रयास करना चाहिये।
मेरी दृष्टि में बच्चों को उच्च शिक्षा में भेजने से पूर्व कम से कम एक महीने गुरुओं के पास रहना चाहिये, १०वीं या १२वीं के बाद लड़के हो या लड़कियाँ, लड़कियों को आर्यिकाओं के पास और लड़कों को मुनियों के पास रहना चाहिए। ऐसे मुनियों और ऐसे आर्यिकाओं के पास जो बड़े प्रैक्टिकल रूप से धर्म की बातें बच्चों को सिखा सके, जीवन व्यवहार को समझा सकें, जीवन की सीमाओं और मर्यादाओं का आभास करा सकें, धर्म का मर्म उन्हें समझा सकें ताकि बच्चे बाहर पढ़ने जाएं तो भटके नहीं। सम्पूर्ण शिक्षा होने के उपरांत, नौकरीपेशा हो जाने से पूर्व और विवाह क्षेत्र में पाँव रखने के पूर्व कम से कम ६ महीना उन्हें गुरुओं के पास रहकर व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए, धर्म की शिक्षा लेनी चाहिए ताकि वे अपने जीवन व्यवहार के क्षेत्र में कहीं विफल न हों। यदि ऐसा होता है, तो मैं तय रूप से कहता हूँ समाज में कोई तलाक नहीं होगा और कोई भी विजातीय विवाह नहीं होगा, यह समाज के उन्नति का आधार होगा। आये दिन इस प्रकार के विवाद होते हैं उन सब से बचने का उपाय यही है। इसके लिए समाज को जितनी जल्दी हो सके कुछ परम्पराएँ शुरू करनी चाहिए।
Leave a Reply