आज बेटे से अच्छी तो बेटियाँ होती हैं। बहू भी एक माता की बेटी ही होती है लेकिन उसको ससुर-सास क्यों अच्छे नहीं लगते, इस पर दुःख होता है उस के लिए हमें क्या करना चाहिए?
यह विडम्बना है, बेटे और बेटी अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। दोनों तरफ से गड़बड़ होती है, बहू अपनी सास को माँ नहीं मानती, सास भी अपनी बहू को बेटी कहाँ मान पाती है? तो मामला गड़बड़ हो जाता है। सास का झुकाव अपनी बहू पर कम और दूर ससुराल में बैठी बेटी पर ज़्यादा होता है; और बहू का ध्यान-रुझान घर में रहने वाली सास पर कम, मायके में रहने वाली माँ की ओर ज़्यादा होता है। और जिस घर में ऐसा होता है उस घर में मामला गड़बड़ हो जाता है। जबकि दूर रहने वाली बेटी तुम्हारे काम में नहीं आने वाली, पास में रहने वाली बहू ही आखरी में पानी पिलाएगी। तुम्हारे मायके में बैठे माँ-बाप तुम्हारे काम में नहीं आने वाले, घर में रहने वाले सास -ससुर तुम्हारे काम में आने वाले हैं। इन बातों को समझें।
हमें प्रारम्भ से बेटी को ऐसी हिदायत देनी चाहिए कि ‘तुम जिस घर में जा रही हो अब वही तुम्हारा घर है। तुम्हारे साथ सास-ससुर न केवल तुम्हारे सास-ससुर हैं अब तुम्हारे माँ-बाप भी हैं। अब इस घर से तुम्हारा कोई सम्बन्ध नहीं’ ; जो लोग ऐसा करते हैं वे घर को बहुत सम्भाल लेते हैं और जो ऐसी शिक्षायें अपनी सन्तान को नहीं देते, बहुत गड़बड़ हो जाता है।
मेरे सम्पर्क में एक सज्जन है, मैं नाम नहीं ले रहा हूँ लेकिन वो इस कार्यक्रम को सुन रहे होंगे। उनको खुशी होगी उनका बेटा न्यूयॉर्क में रहता था। १९९९ की बात, उनके बेटे और बहू में आपस में खटपट हो गई। मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि दृष्टिकोण क्या रखना चाहिए! बेटे-बहू में किसी बात को लेकर खटपट हो गई। दोनों भारत से थे और अमेरिका में रहते थे। स्थिति भयंकर हो गई और खटपट में अगर बहू एक रिपोर्ट कर दे तो बेटे का पूरा कैरियर खत्म। इधर खबर आई, बेटी ने अपने मायके में फोन किया और बेटे ने अपने पिता को खबर की। दोनों लोग बड़े ही समझदार थे। बेटे ने जब अपने पिताजी से कहा तो पिताजी ने अपने बेटे को डाँटा और बहू का पक्ष लिया; और बहू ने जब अपने मायके में फोन किया तो उनके पिताजी ने अपनी बेटी को डाँटा और कहा ‘अब इस घर में से तेरा कोई नाता नहीं, तेरा घर वही है। तू गई, अब तू अपने आप में एडजस्टमेंट कर।’ ससुर ने फिर ऐसी स्थिति की जटिलता को देख करके बहू को तुरन्त बुलवा लिया। मैं भोजपुर में चातुर्मास कर रहा था। अमेरिका से भारत बुलवा लिया, चार पाँच महीना यही रखा, normal किया। उनका स्वयं का विदेश जाने का त्याग था। उन्होंने हमारी पिच्छी ले रखी थी। उदाहरण अच्छा है, तो नाम लेने में भी कोई बुराई नहीं, मैं नाम ले लेता हूँ अजीत पाटनी है भोपाल वाले, बहुत अच्छे कार्यकर्ता हैं, सामाजिक कार्यकर्ता आज पूरे के पूरे भोपाल क्षेत्र में बहुत अच्छा काम करते हैं और उनके समधी हैं महावीर जी पांडया गुना वाले। महावीर पांडया ने अपने दामाद का पक्ष लिया और अजित पाटनी ने अपनी बहू का पक्ष लिया। मामला ऐसा सलटा कि एक घटना जो दुर्घटना का रूप ले रही थी वह सुघटना बन गई और उसके बाद उन्होंने अपने बेटी और जमाई को भेजा कि कुछ दिन इनके बीच रहकर इन का मामला settle करेंगे। यह १९९९ की घटना है, आज २०१४ सब खुशहाल है।
सोच को ठीक रखनी होगी। मैं घर में रहने वाले सास-ससुर से यह कहना चाहता हूँ कि अपनी बहू को बेटी मानो और हर घर की बहू को मैं कहना चाहता हूँ कि अपने सास-ससुर को ही अपना माँ-बाप मान करके चलो। बहू को बेटी की तर इतना प्यार दो ह कि वह अपने घर का फोन नंबर भी भूल जाये और सास को इतना सम्मान दो कि दूर बैठी बेटी का नाम भी भूल जाए तब तुम्हारी उपलब्धि है और तब तुम्हारी मजबूती है।
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