जब मेरे पति ऑफिस से घर लौटते हैं, तो दो-चार बातें आते ही सुना देते हैं। मैं भी कहाँ तक सहन करूँ, मैं भी उन्हें सुना देती हूँ। घर में झगड़ा का माहौल बन जाता है, बच्चों पर भी इसका अच्छा प्रभाव नहीं पड़ रहा है, मन बोझिल है। महाराज जी घर का माहौल शान्त कैसे बनायें?
यह कहानी तो घर-घर की है। यह सवाल आज अमेरिका से आया है, इससे मिलता-जुलता सवाल मेरे सामने एक बार आया। एक बहन जी ने आज से करीब आठ-दस बरस पहले जिस समय शंका समाधान इस तरह से लाइव नहीं होता था, मुझसे आकर निवेदन किया कि ‘महाराज जी रोज दो चार बातें सुना देते हैं तो अभी तक तो मैं सहन करती रही और सहन करने के बाद आप अब मुझसे भी रहा नहीं जाता, मैं भी अच्छे से जवाब दे देती हूँ।’ मैंने उनसे सवाल किया ‘यह बताओ, जब आपके वो बोलते-सुनाते थे और आप चुप रहती थी, तब क्या होता था?’ ‘तब मामला थोड़ी देर में ठंडा हो जाता था’ और हमने कहा ‘जब आप जवाब देने लगीं तब क्या होता है?’ बोली – ‘पूरी रात शीत युद्ध चलता है। पहले वह बोलते थे, मैं सुन लेती थी, चुप रहती थी तो मामला थोड़ी देर में ठंडा हो जाता था और जब से मैंने जवाब देना शुरू कर दिया, तो पूरी रात शीत युद्ध चलता है’, तो हमने कहा ‘आपने विवाह युद्ध करने के लिए किया कि प्रेम करने के लिए किया? तय करो। तनातनी के लिए किया कि जिंदगी को ठीक से जीने के लिए किया? जितना सहन करोगे, उतना समर्थ बनोगे।’
अगर किसी व्यक्ति की ऐसी प्रवृत्ति बन गई है, तो उसे उसकी प्रवृत्ति मान करके स्वीकार लो, सहन करो। प्रतिक्रिया कम से कम करो, अनुकूल प्रतिक्रिया करो, नकारात्मक प्रतिक्रिया मत करो, मन में शांति आ जाएगी, प्रसन्नता आ जाएगी। एक का पति बड़ा गुस्सेल, वह घर आए और कुछ न कुछ बोले, जब कुछ बोले तो पत्नी बोले कि ‘आप बहुत अच्छा बोलते हैं, जब आप बोलते हो तो आपका चेहरा बहुत खिला-खिला लगता है। बहुत अच्छा लगता है जैसे आप मेरे ऊपर प्यार उड़ेल रहे हों।’ यह भी एक प्रतिक्रिया है, सामने वाला धीरे-धीरे ठंडा हो जाएगा। होता यह है कि आग में पानी डालने की जगह आप लोग पेट्रोल डाल देते हो, तो आग ज्वाला बन जाती है। हमेशा जीवन में सार तत्त्व को पाना है, तो आग में पानी डालिए पेट्रोल नहीं।
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