यह कैसा समय चल रहा है कि बाबा लोग तो व्यापार कर रहे हैं, और व्यापारी लोग बाबा बनने की सोच रहे हैं। पिछले पूरा महीना, मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बड़ी गरमा गरम खबर चली, राम रहीम को लेकर। चाहें आशाराम जी बापू हों, चाहें राम रहीम हो, चाहें फलहारी बाबा हों, तीनों का निमित्त एक जैसा ही था, सजा पाने के लिए। मेरी जिज्ञासा यह है कि इनको सजा तो मिली, लेकिन इनके निमित्त से या इनकी वजह से कई लोगों के जीवन में परिवर्तन आया और उन्होंने धर्म की राह पकड़ी और उनके जो हजारों-लाखों फॉलोअर्स है, वह आज भी उनके नाम से वह भक्ति भाव जो भी उनकी क्रिया है, वो लोग करते हैं। मेरा प्रश्न यह है कि जैन धर्म के सिद्धान्त के अनुसार क्या यह एक व्यक्ति के कर्म से उन लोगों का पाप कर्म का उदय बन गया जो वह उनके लिए निमित्त बन गया या इन बाबा लोगों का कोई पूर्व जन्म का कोई कर्म था, जो ऐसी सजा मिली?
जो भी गलत करता है, तो उसका गलत फल तो उसको भोगना ही पड़ता है। इन लोगों ने जो भी किया आस्था के साथ खिलवाड़ किया और आस्था के साथ खिलवाड़ करना बहुत बड़ा पाप है। नीचे रहकर ऊपर का काम करना प्रशंसनीय है और ऊँचे रह करके नीचे का काम करना महा निंदनीय माना जाता है। उन लोगों ने जो कृत्य किए हैं, ये कृत्य एक साधु के आचरण के विरुद्ध तो थे ही, मानवीय दृष्टि से भी अमानवीय थे। घोर निंदनीय कृत्य! ऐसे कृत्य करने वालों को एक परिणाम तो मिलना था। रहा सवाल कि उनके इतने फॉलोअर्स- तो कभी-कभी किसी का पुण्य जब तक प्रबल होता है उसका प्रताप चारों तरफ फैलता है और उस प्रताप में लोग उसके ओर आकर्षित होते हैं। ये जो इस तरह की गलतियाँ करते हैं, इनमें भी दो स्थितियाँ होती हैं, एक गलती वह जो प्रवृत्ति के कारण होती है; और एक गलती जो मन के स्खलन के कारण होती- भटकाव, निमित्त वैसा बनाया। अपने साथ जब इस तरह का वातावरण जोड़ करके चलेंगे तो साधना से व्यक्ति विमुख होगा, तो एक जगह भटका, बाकी जगह अपने आप को स्थिर रखा, तो पब्लिक के बीच में तो रूप अलग और भीतर का रूप अलग। जब पर्दाफाश होता है, तो लोग उसको समझते हैं। निश्चित रूप से इतने सारे लोगों की आस्था से खिलवाड़ करना एक बहुत बड़ा पाप है। उन लोगों की आत्मा के बारे में सोचो, उनको क्या आघात पहुँचा होगा। यह महापाप है, और ऐसे महापाप कृत्य करने के लोगों को परिणाम तो भोगना ही पड़ता और भोग रहे।
अब आप यह सवाल कर रहे हैं कि जो लोग आज उनको पूज रहे हैं उनको क्या कहेंगे? वे भक्ति नहीं कर रहे वे मोहवश पूज रहे हैं। जैन धर्म कहता है व्यक्ति की पूजा नहीं की जाती, गुणों की पूजा की जाती है।
ण हि देहो वंदिज्जइ ण रूवो ण जाइसंभूओ।
को वंदिमो गुणहीणो ण समणो ण सावयो सो दु।।
न तो शरीर पूजा जाता है, न कुल पूजा जाता है, न रूप पूजा जाता है, न जाति पूजी जाती है। अगर मुनि भ्रष्ट हो जाए तो वन्दनीय नहीं है, क्योंकि न तो वह मुनि है, न श्रावक है। मुनि इसलिए नहीं की वह मुनिपने से विरत है और श्रावक इसलिए नहीं क्योंकि वह श्रावक के वेश में नहीं।
तो यह जैन धर्म की बात है, गुण की आराधना करो, उन्हीं की वन्दना करो जिसे तुम ने गुणी मान करके अपने हृदय में बसाया। और यदि वही अपराधी निकल जाए तो दूर से सलाम करो और योग्य गुरु की तलाश करो।
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