स्वर्ग और नरक मरने के पहले मिलते हैं या मरने के बाद?
स्वर्ग और नरक मरने के बाद भी मिलते हैं, और मरने के पहले भी मिलता है।
एक राजा था, उसने एक साधु से पूछा – नरक क्या है? वह बहुत बड़ा और प्रभावी राजा था। साधु ने कहा- इतना ज्ञान नहीं तो राजा क्यों बन गए? तीन-चार गालियाँ दे दी राजा को। अब राजा को कोई गाली दे, बर्दाश्त होगा? राजा तमतमा गया, एकदम चेहरा लाल हो गया। बोला-‘निकालो इस साधु को’- जिसको अपना गुरु मानता था। राजा जब तमतमाया, तब साधु ने तुरन्त अपना पैंतरा बदला और कहा ‘बस यही नर्क है।’ राजा झेंप गया, ‘अरे! मैंने गलती कर दी।’ “तुम्हारे अन्दर का जो भी कारण है, यही नरक है।” उसे लगा ‘जिस गुरु को मैं भगवान की तरह पूजता हूँ, थोड़ी गुस्से में ही सही, पर उसका आज मैंने कितना अनादर कर दिया, अपमान कर दिया।’ उनके चरणों में गिर पड़ा, क्षमा माँगने लगा, आँखों से आंसू की धार बहने लगी और कहा ‘गुरुदेव क्षमा करो। मैंने बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया, मुझसे बहुत बड़ा पाप हो गया, मुक्त करो। जब एकदम अपने आँखों के आंसू से चरणों को धो डाला।’ तो गुरु ने कहा “वत्स! उठ, यही स्वर्ग है।”
मन की विशुद्धि का नाम स्वर्ग और मन की मलिनता का नाम नरक है। यह इस दुनिया का है, समझ गए। और मरने के बाद जो स्वर्ग-नरक है, वह तो सब जानते ही हैं। इसलिए मरने के बाद हम स्वर्ग जाएँ या नरक, इसकी चिन्ता मत करो। जीते जी अपने जीवन को स्वर्ग बनाने का उपाय करो। जीवन धन्य होगा, अपने जीवन को नरक बनने से बचाओ।
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