जब व्यक्ति धर्म आराधना करता है, तो उसका उस वक्त लक्ष्य क्या होना चाहिए?
धर्म आराधना करते वक्त अपने जीवन का मूल लक्ष्य अपने जीवन की पवित्रता का होना चाहिए। हम धर्म का आचरण करते क्यों है? कुछ लोग कि यह धारणा है, कि हम धर्म करते हैं पुण्य पाने के लिए; कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि धर्म करते हैं पाप काटने के लिए; कुछ है जो स्वर्ग जाने के लिए धर्म करते हैं; कुछ लोग हैं जो मोक्ष जाने के लिए धर्म की बात करते हैं। पर सच्चे अर्थों में – धर्म क्यों करो? तो मैं आपसे यही कहूँगा स्वर्ग जाने के लिए धर्म करने में उतना मज़ा नहीं, जितना जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाने के लिए धर्म करने में।
बोधि: समाधि: परिणाम शुद्धि:, स्वात्मोपलब्धि: शिवसौख्य सिद्धि:।
चिन्तामणिं चिंतित वस्तुदाने, त्वां वंद्यमानस्य ममास्तु देवी!
हम धर्म को प्राप्त करें तो हमारा ही लक्ष्य हो कि मुझे ‘बोधी- सद ज्ञान, सद्बुद्धि’ की प्राप्ति हो। समाधी-मेरे चित्त में समाधान हो। परिणाम शुद्धि-मेरे भाव में विशुिद्धि हो, स्वात्मोपलब्धि- मैं अपनी आत्मा को प्राप्त करूँ, तब शिव सुख, मोक्ष और कल्याण की सिद्धि हो सकती है।
तो जीवन को पवित्र बनाना ही प्रत्येक धर्मात्मा का लक्ष्य होना चाहिए। जो लोग पुण्य पाने के लिए धर्म करते हैं और जो लोग पाप काटने के लिए धर्म करते, मुझे पता नहीं वह कितना पुण्य पाते हैं और कितना पाप काटते हैं। पर मैं इतना निश्चित रूप से कहता हूँ कि अगर जीवन को पुण्य बनाने के लिए धर्म करोगे, तो पुण्य भी बढ़ेगा और पाप भी कटेगा, स्वर्ग मिलेगा और मोक्ष भी मिलेगा।
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