शरीर के स्वास्थ्य पर मन का प्रभाव!

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शंका

मानव शरीर के स्वास्थ्य पर विचार और मन का क्या प्रभाव पड़ता है? ऐसी क्या चीज है जिसके कारण स्वास्थ्य बनता और बिगड़ता है और ऐसा क्यों होता है?

समाधान

मन से हमारे स्वास्थ्य का बड़ा गहरा सम्बन्ध है। मन अच्छा है, तो हमारा स्वास्थ्य काफी कुछ अच्छा होगा यद्यपि स्वास्थ्य का सम्बन्ध शरीर से है लेकिन मन से उसका गहरा नाता है। शरीर में कितनी भी गहरी बीमारी है, इस बीमारी को अगर हम मन पर हावी न होने दें तो उसे बड़ी आसानी से दूर किया जा सकता है और शरीर में कोई बीमारी न भी हो और मन में वह हावी हो जाए, उसे हटा पाना बड़ा मुश्किल है। कर्म शास्त्र की दृष्टि से हमारे यहाँ कहा गया कि कर्म अपना फल द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के हिसाब से देता है। हमारे शरीर में बीमारी होना, हमारे शरीर के रसायनों में होने वाले परिवर्तन का एक उदाहरण है। भीतर कुछ चेंज हुआ तो शरीर में सन्तुलन बिगड़ा, हमारे रसायनों का समीकरण बिगड़ा, बीमारी आई। उस घड़ी में यदि हम अपने मन पर सन्तुलन पाने की क्षमता विकसित कर लेते हैं, मन को नियंत्रित कर लेते हैं, हमारे भाव बदल जाते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव में भाव एक बड़ा कारण है। भावों के परिवर्तन से कर्मों का प्रभाव बदल जाता है। 

यदि हमारे जीवन में कोई बीमारी हो, कितनी भी गहरी बीमारी है, यदि उस घड़ी में यदि मन में विशुद्धि हो तो हम अपने बीमारी को ठीक भी कर सकते हैं और उसके वेग को भी कम कर सकते हैं। अब मन में आकुलता हो तो साधारण बीमारी भी हमारे लिए बहुत गहरा असर करती है। जैन धर्म शास्त्र की व्यवस्था के अनुसार ऐसा कहा गया है कि अगर किसी की असाता का उदय चल रहा है और उस समय वह अपने परिणाम अच्छे रखें तो बहुत सम्भव है कि उसकी असाता साता में बदल जाए या असाता साता में न बदले, आसाता का वेग घट जाए, साता की उदीर्णना हो जाए, साता का उदय हो जाए या उसकी शक्ति कम हो जाए। इसी प्रकार किसी के खूब साता का उदय चल रहा है और परिणाम अगर उसने बिगाड़ दिया, संक्लेश कर दिया तो ये भी सम्भव है कि उसकी साता असाता में बदल जाए या उसका वेग कम हो जाए।

सबका सार यही है कि कैसी भी बीमारी हो, बीमारी को मन पर हावी मत होने दो, उसे धैर्य से, समता से, संयम से और सन्तोष से सहन करो।

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