इंसान जब खुश होते हैं तब भी रोते हैं, जब दुखी होते हैं तब भी रोते हैं, ऐसा क्यों?
सुबह होती है तब भी लाली होती है और शाम होती है, तो भी लाली होती है। होती है न? ऐसा क्यों? इस बच्ची ने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। इसने पूछा है कि इंसान खुश होता है तब भी रोता है और दुखी होता है, तो भी रोता है, ऐसा क्यों? मैं उत्तर दे रहा हूँ – सुबह होती तब भी लाली होती है और शाम होती तब भी लाली होती है ऐसा क्यों। दोनों में अन्तर है – सुबह की लाली होती है, तो हमारे अन्दर हर्ष होता है, ऊर्जा मिलती है। और शाम की लाली होती है, तो समझ में आता है अब dark (अंधेरा) होने वाला है। तो यही है – दुःख और सुख दोनों एक प्रकार की संवेदना है। लेकिन एक संवेदना सकारात्मक है और दूसरी संवेदना नकारात्मक। सकारात्मक संवेदना से व्यक्ति के जीवन के अन्दर ऊर्जा आती है और नकारात्मक संवेदना से उसकी ऊर्जा क्षीण होती है। इसलिए स्वाभाविक प्रक्रिया है – जैसे प्रकृति सूरज उगते समय भी खिलती है और सूर्य के अस्त होते समय में भी लाल होती है, वैसे ही मनुष्य खुशी में भी आंसू बहाता है और दुःख में भी आंसू बहाता है।
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