जीव जब पाप कर्म के उदय से नर्कों में जाता है, तो वहाँ भी उसके परिणाम सन्क्लेशित रहते हैं तो फिर वहाँ से निकलकर किस तरह से उच्च कुल और गोत्र में जाता है? तथा नरकों में वो संक्लेश परिणाम कैसे भोगता है?
अपनी भव्यता के अनुरूप हर प्राणी के परिणाम बन जाते हैं। नरक में भी जीव छटे नरक से निकल कर के मनुष्य हो सकता है। पांचवे नरक से निकला हुआ नारकी मुनि बनकर मोक्ष जा सकता है। पाप कर्म की वजह से वहाँ गया, वहाँ पाप कर्म में प्रायः अनुरक्त रहता है। लेकिन आयु बन्ध के समय कुछ उसके परिणाम ऐसे होते हैं जो उसकी आत्मा को जगा देते हैं और वैसे परिणाम से मनुष्य आयु जैसे पुण्य कर्म का बन्ध करके यहाँ आ जाता है। तीसरे नरक से तो तीर्थंकर भी आते हैं तो यह जीव के परिणामों की विचित्रता है। इस बात से सीख लो कि पतित से पतित प्राणी के अन्दर भी महान बनने की सम्भावनाएँ जीवित रहती है। बुरे से बुरे व्यक्ति में भी सुधार की सम्भावनाएँ हमेशा कायम रहती है। इसलिए कोई व्यक्ति कितना भी पतित क्यों न हो, उससे घृणा मत करो। सोचो आज पतित है, कल सुधर सकता है। पाप से घृणा करो पापी से नहीं। रोग की चिकित्सा करो रोगी की नहीं। यह सिद्धान्त ध्यान में रखो, जीवन बदलेगा।
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