मै चेन्नई से ८० किलोमीटर दूर रहती हूँ। यहाँ कोई जैन मन्दिर भी नहीं है। हमारा चैन्नई भी जाना बहुत कम होता है परन्तु मैं सुबह एवं रात को जिनवाणी चैनल जरूर देखती हूँ। हम अपने धर्म का ज़्यादा अनुपालन तो नहीं कर पाते हैं, क्या हम जो भी टीवी पर देखते हैं उससे भी कुछ पुण्य मिलता है? मन तो बहुत करता है आपके दर्शन करने का परन्तु नौकरी ऐसी है कि छोड़ कर आना भी मुश्किल है। कभी-कभी मन बहुत अशांत रहता है। नौकरी छोड़ने का मन करता है, क्या करूँ, मार्ग दर्शन करें।
अपने प्रोफेशनल लाइफ के साथ तालमेल बना करके जीना बहुत कठिन काम होता है लेकिन तालमेल बना करके जीना चाहिये। घर से मन्दिर दूर है और ये दुविधा होती है, बात सही है। पहले तो भावना भाओ कि मेरा पुण्य ऐसा बढ़े कि या तो मेरी नौकरी ऐसी जगह हो जाए जहाँ भगवान का मन्दिर हो अथवा मेरा पुण्य इतना बढ़े कि जहाँ मेरी नौकरी है वहाँ भगवान का मन्दिर बन जाए। ये आपकी समस्या का समाधान होगा।
फिर भी जब तक नहीं हो रहा है आप चैनल के माध्यम से यदि विनय, बहुमानपूर्वक इस तरह के कार्यक्रमों में भागीदारी रखते हैं और अपने विचारों की पवित्रता रखते हैं तो यह भी आपके लिये कम पुण्य लाभ का कारण नहीं है। मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ जितने लोग इस कार्यक्रम को देख रहें हैं या देखते हैं, इन कार्यक्रमों को एक कार्यक्रम के भाँति न देखें, इसे एक धार्मिक आयोजन की तरह अपने आपको सम्मिलित करें, तो घर बैठे महा पुण्य के भागीदार आप बन सकते हैं। इसलिए अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये आप पवित्रता का ध्यान रखें खाते-पीते, बाते करते हुये यदि आप देखेंगे तो आपका पुण्य क्षीण होगा और आप विशुद्धि के साथ करेंगे तो वो आपके जीवन को काफी ऊँचाइयों तक पहुँचाएगा। वचनों का प्रभाव नहीं पड़ता, वचन तब प्रभावित करते हैं जब हमारे मन में वैसी श्रद्धा होती है। तो श्रद्धा से भर करके यदि आप इस तरह के कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता देते हैं तो मेरा अनुभव तो ये बताता है कि बहुत सारे लोगों के जीवन में वो प्रभाव पड़ा है जो सामने सुनने वालों में भी नहीं पड़ सका। इसलिये आप दूर रह करके भी अपने जीवन में बहुत लाभ ले सकती हैं बशर्ते इसे ठीक ढंग से समझें।
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