शंका
हम कभी किसी तीर्थ क्षेत्र पर जाते हैं तो वहाँ पर हम बोल देते हैं कि ‘ये काम हमारा सिद्ध हो जाएगा तो एक सौ आठ परिक्रमा लगाँएगें या फिर से दर्शन को आएँगे’, क्या ऐसा बोलना सही है?
समाधान
ये दुर्बलता है मन की, लेकिन भक्त क्या करें बच्चों को जब भी तकलीफ होती है, तो माँ के आँचल की ओर ही लपकता है। भगवान की भक्ति निष्काम भाव से करनी चाहिए। भगवान के पास भक्त बनकर जाना चाहिए याचक बनकर नहीं। लेकिन, मनुष्य का मन दुर्बल है जब उसके सामने कोई समस्याएँ आती है, तो समस्या के निवारण के लिए भगवान के दरबार में गुहार लगा देता हैं।
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