आजकल के माता-पिता कहते हैं कि “बच्चे कहना नहीं मानते हैं और धार्मिक कार्यों में भाग लेना नहीं चाहते”। महाराज श्री उसमें किसकी गलती है बच्चों की या संस्कारों की?
मैं तो यह कहता हूँ सिक्के को जिस सांचे में ढाला जाए वह वैसा ढलता है। बच्चा तो एक धातु की तरह है, परिवार उसके व्यक्तित्त्व के निर्माण की टकसाल है। जिस टकसाल में ढाला जाएगा सिक्का वैसा होगा। परिवार का वातावरण बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो लोग यह कहते हैं बच्चे कहना नहीं मानते उन्हें यह समझना चाहिए कि हम बच्चों को पहले कहना मानने लायक तो बनाएँ। आप बच्चों को ठीक ढंग से पालोगे, ठीक ढंग से ट्रीट करोगे तो कोई भी बच्चा आपकी बात का उल्लंघन नहीं करेगा, वो कहना मानेंगे।
दूसरी बात धर्म के सन्दर्भ में यह बात बड़ी स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि जो लोग अपने बच्चों पर धर्म थोपते हैं, धर्म सिखाते नहीं है यदि हम धर्म सिखा दें तो आज भी बच्चे धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए बहुत उत्साहित रहते हैं। धर्म धोपने की चीज नहीं है, सिखाने की वस्तु है, जगाने की वस्तु है। उनकी निष्ठा जागेगी, जीवन में जरूर बदलाव आयेगा।
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