जिससे हमारी ज़्यादा नज़दीकियाँ होती है, जिनसे हमारे रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं तो उन्हीं से राग और द्वेष क्यों होता है? जैसे-जैसे परिवार के रिश्ते दूर होते जाते हैं, वैसे ही राग और द्वेष कम होता चला जाता है। किसी के यहाँ कोई मरण हुआ है, तो हमें किस तरह सम्बोधन देना चाहिये?
आपने बिल्कुल सही कहा है कि जिनसे नजदीकी होती है, तो उन्हीं से राग और द्वेष होता है। नजदीकी का मतलब राग। हमारे शास्त्रकारों ने कहा है- जहाँ राग होता है, वहाँ स्वाभाविक रूप से द्वेष होता ही है। नजदीकी और निकटता राग के कारण होती है और राग की ओट में द्वेष पलता है, ये स्वभाव है। यह स्वभाव टाला नहीं जा सकता। जिनसे राग नहीं तो उनसे हमें द्वेष भी नहीं होता। कर्म बन्धन का कारण भी यह है। इसलिए सबसे दूर होकर अपने में विचरण करने की बात की जाती है, अपने में लीन होने की बात की जाती है।
दूसरी बात एक ही दु:ख में अलग-अलग संवेदना। जब व्यक्ति के अन्दर राग का उद्वेग होता है, उस समय उसके ज्ञान की शक्ति कुंद हो जाती है, मंद हो जाती है। उस समय कोई दूसरा व्यक्ति आकर के हमको संबोधित करते हैं तो बातें हमारे मन को लग जाती है और उस सलाह से हमारा जो उद्वेग् है, वह शान्त होता है। मरण के समय एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति देने की प्रक्रिया है, तो यह करना चाहिये।
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